पृष्ठ:चंदायन.djvu/२५

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चन्दायनको इन प्रतियों मिलनेको यात ज्ञात होनेपर रावत सारस्वतका ध्यान अपनी उस प्रतिकी और गया जो उनके पास बीसौं बरससे पड़ी थी और जिसे धीरेन्द्र वर्माने अप्रमाणित घोषित कर दिया था। उन्होने तत्काल अपने उस ग्रन्थका परिचय वरदामें प्रकाशित कराया और उसका एक पति मुद्रण मुझे भेजा।चन्दायनके सम्पादनकी इच्छा प्रकट करते हुए उन्होंने यह भी सूचित किया कि बम्बईवाली प्रतिका मेरा पाठ उन्हें कहासे प्राप्त हो गया है और वे मुझसे तत्सम्म धर्म अन्य आव श्यक जानकारी चाहते हैं। शालीनताकी इस प्रकार उपेक्षा देवकर मेरा चौक उठना स्वाभाविक था। मैं क्षुब्ध हो गया । मोतीचंद्रको भी ये बातें अच्छी न लगी। उन्होने मी सलाह दी कि मैं अपना पाट शीमातिमीम प्रकाशित कर दूं। परत मैंने पुन चन्दायनके सम्पादनमें हाथ लगाया । उसके लिए सामग्री जुटाते समय जब कमल कुलश्रेष्ठके शोध निबंध हिन्दी प्रेमाख्यानक काव्यको उल्ट रखा था, उस समय मेरा ध्यान उनके इस क्यनकी ओर गया कि गाद तासीने अपनी पुस्तक हिस्तोरे द ला लितरेत्योर हिन्दुई एव हिन्दुस्तानी औरक चन्दाकी कुछ अप्राप्य मतियोंका उल्लेख किया है। यह कथन मुझे कुछ आश्चर्यजनक, साथ ही महत्त्वपूर्ण जान पड़ा। मेंने तत्काल उक्त ग्रन्थका लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय द्वारा प्रस्तुत अनुवाद हिन्दुई साहित्यका इतिहास देखा, पर उसमें ऐसी कोई बात मुझे न मिल सकी जिससे कमल कुलश्रेष्ठके कथनका समर्थन हो सके। यह चाव नहीं कि कुलश्रेष्ठने गलत सूचना प्रस्तुत की है वरन् वार्णेयने अनुवाद करनेमें स्वेच्छा नीति बरती है। जो अश उन्हें अनावश्यक जान पड़े, उन्हें उन्होंने छोड दिया है । ऐसे आकर अन्यों के अनुवादमै, जो मूल्में दुष्प्राप्य हो, स्वेच्छाका प्रयोग किस प्रकार घातक सिद्ध हो सकता है, यह स्पष्ट सामने आया । मेरे लिए आवश्यक हो गया कि मूल मन्थ दे। सासीके उक्त प्रन्यो दो सस्करण प्रकाशित हुए थे । एक तो १८३७ और १८४७ ई० के बीच और दूसरा १८७०७१ ई० में दूसरे सस्करणमे लेखमने काफी परिवर्तन किया है। पहले संस्करणको उलटनेपर जो कुछ मिला उसका अग्रेजी रूप इस प्रकार है - रोमान्स(दि) आव जाँदक एण्ड हुरक आर द फेरी पैलेस आव द लेक- अ कार्यो साइज्ड मैनुलिप्ट विथ मेमी कलई डेकोरेशन्स । दिस मैनुनिष्ट इस रिटेन इन पिक्युलियर परशियन कैरेक्टर्स । इट बिलगण्ड ड द रिव कलेक्शन आव द ड्यूक आच ससेक्स, अकिल आप हर मजेस्टी द कीन आव ग्रेट ब्रिटेन ।' अर्थात्-जाँदक और दरककी प्रेम कथा अथवा झील स्थित परीमहल-एक चौपता हस्तलिखित प्रन्य, जिसमें अनेक रंगीन अलकरण है । यह हस्तलिखित प्रन्य विचित्र ढग पारसी लिपिमें लिखा हुआ है। यह विदेनकी महारानी चचा ज्यूक आय ससेक्सरे मूल्यवान सग्रहमें है। १ खण्ड १, पृ० ५९६