पृष्ठ:चंदायन.djvu/२७

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माय किया था। पश्चात् उक्त पुस्तक विक्रेताने उस समय हस्तलिखित मन्योंको परिसीवे सुप्रसिद्ध विद्वान नथैनियल लान्दके हाथ बेचा। आगे सोज करनेपर ज्ञात हुआ कि नपैनियल ब्लान्दने जो इनलिखित अन्य समह क्येि थे, उन्ह १८६६ ई० में अल आव मापाईने क्रय क्यिा था और वे उनके विबलियोथेका लिप्टेसियाना मामक निजी पुस्तकालयमें रसे गये थे। आगे खोज करनेपर पता चला कि १९०१ ई० में कापाई सप्रदको मैनचेस्टरके जान रोलैण्ड्स पुस्तकालयने क्रय किया था। जब मैंने रीड्स पुस्तकालयसे पूछताछ की तो उन्होंने प्रापर्ड संग्रह प्रय फरनेकी यात स्वीकार करते हुए सूचना दी कि उपर्युक्त ग्रन्थ उनके संग्रहमें मौजूद है। तत्काल मैंने उनसे उक्त ग्रन्थका माइक्रोफिल्म देनेवा अनुरोध किया। माइकोपिस्म भानेपर ज्ञात हुआ कि मेरा अनुमान सर्वथा सत्य था। उत्त: अन्य वखत चन्दायन ही है। इस प्रकार मेरे हाथ चन्दायन की एक बहुत बडी प्रति आयी और मै उस प्रतिवे पाठोद्धारमें जुट गया। इस नयी प्रतिका पाठोटार चल ही रहा था कि डब्लू० जी० आर्चर द्वारा सम्पादित इण्डियन मिनियेचर नामक भारतीय चित्रोंका चित्राधार प्रकाशम आया। उसमे उन्होंने मैसाचुसेट्स (अमेरिका) निवासी फैसिस होकरके समहसे एक चित्र प्रकाशित किया है। उसे उन्होंने यम्बई प्रतिके चित्रोंकी सीरीजरा बताया था। इस सूत्रसे चन्दायनके कुछ और पृष्ठ पास होनेकी सम्भावना सामने आयी और मैं उन्ह भी प्रास करनेकी ओर प्रयत्नशील हुआ पलत उक्त सग्रहसे इस काव्यके दो पृट हाय आये। इस प्रकार कुछ बरसों पूर्वतक ओ चन्दायन हिन्दी साहित्य इतिहासमे चल नाम रूपमे जीवित था, उसके सम्बन्धकी पर्याप्त सामग्री एकत्र हो गयी। मैंने उसके सम्पादनका कार्य नये सिरेसे आरम्भ किया और परिणाम स्वरूप यह अन्य अप आपये सामने है । उपल्ब्ध सामग्रीके आधारपर चन्दायनको अपने पूर्णरूपम पस्तुल करना,तो सम्भव नहीं हो सका, फिर भी उसका एक बहुत बड़ा अश सामने आ गया। अभी उसके आदि और अन्सके कुछ अश अनुपलब्ध है और बोचमें यत्रतत्र कुछ पृष्ठोंका अभाव है। यदि रावत सारस्वतवाली प्रतितक मेरी पहुँच हो सकती तो सम्भवत आदि और मध्य अगोंकी पूर्ति कर पाता, यदापि उसका पाठ अत्यन्त विकृत है । सुनता हूँ वे उसे प्रकाशित कर रहे हैं। यदि वह प्रति कभी प्रकाशम आ सकी तो यह कमी पूरी हो जायगी, पर अन्तिम अशी प्रति ती सम्भव है, जब कोई नयी प्रति उपलब्ध हो। प्रस्तुत प्रयत्न अन्यकी उपलब्ध सामग्रीको पारसी लिपिसे नागराक्षरोमें प्रस्तुत पर उन्हें क्रमबद्ध कर देने तक ही सीमित है। किन्तु अवता यह काम मी कितना कठिन है, इसका अनुभव वही कर सकते हैं जिन्हें इस कार्यका च्यावहारिक अनुभव है। १ इडियन मिनियचर्म, बनेक्टीकट, १९६०, फरक १३ ।