पृष्ठ:चंदायन.djvu/२७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३३४ (मनेर १६३) दास्तान पर्दन लेख अज सोचे चाँदा (चाँदके विरहमें रोरक) सात देवस लगि सरग डफारा । सोक सँचर आन निसियारा ||१ राहु केतु यह देखत आहा । सुरज सनेह पाउँ न अहा ॥२ सुक्र बिरस्पति दोउ बुलाये । चाँद कचितयत गरह दुहुँ आये।।३ चरु महि लेकर मारि अदाबहु । चॉद मोर पिय आजु जियाबहु ॥४ गगहा बिछा कीन्हा पै धरी । मैं सँग आगों होइ गिरी ॥५ सुरज क रोवत तरेई, और नसत को आह ।६ वहिक झार सरग सब जरै, अउर धरति को आह ॥७ ३३५ (मनेर १६३य) एजो इल्हाहोजारी कर्दने लोरक (लोरका घिराप) रैन भोंग परकार सूरा । जैर सुनॉ सो धाहहिं आवा ॥१ तन्त न मन्त न औखद मूरा । और सहेलिहँ चन्हन तोरा ॥२ लोरक बीर बहु कारन करई । चाहि कपार कुन्त दै मरई ॥३ जिहि लगितजेउँ मभ घर बारू। तिहि विन कम अब जीउँ अधारू॥४ चन्दन काटि के चितइ रची। आन आग तिह ऊपर सजी ॥५ लै सन्दर बारी, फर्मे धरि सरियाड १६ दयी गुनी एक आनाँ, चाँदालीन्हि जियाइ ॥७ टिप्पणी-(१) #-जिराने । धाहि-दोटा हुआ। (२) यन्हन---धन । (६) मन्दर (ग. न्यानर>प्रा० वदस्माणर, यक्षगाणर>गोदर)-- अग्नि । पारी-जलाया । मरियाइ-मजार। (७) गुनी (गुणी)-गारही, पिंपैत्र । रीदि-लिया।