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पृष्ठ:चंदायन.djvu/२८०

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२७१ ३३६ (मनेर १६४) दास्तान आमदने गारी न गुफ्तने मन्तर बर चादा (गारदीका जाकर चाँदपर मन्त्र कना) सवन लागि मन्त्र उँह कही । मुनतहि लोग अचम्मै रही ॥१ भरि एक रात चॉद हुत डसी । उसतहि मुई न विसकर बसी ॥२ अगनित गुनी सभै चलि आवा । होई अकारन मरन न पावा ॥३ जियते जीउ न काहूँ माई । उसतहि मुयई परट घर आई ॥४ अब सो गुनी मन्त्र एक बोली । सुन बाजा हमराकस टोली ॥५ देख गुनी मन चिन्ता, अखेउँ मन्त्र एक बार ६ गुरु कै बचन सॅभारउँ, जीउ देइ करतार ॥७ ३३७ (मनेर : ६४) दास्तान जिन्दाशुदने चॉदाका बेपरमाने खुदाताला (ईश्वरेच्छासे धादामा जीवित होना) पिरम मन्त्र जो गारुड़ पढ़ा । बॅकर लहर सुन चाँदहि चदा ॥१ कर कंगन अभरन सभ दीन्हा । औ सो गारुड मॉगि के लीन्हा ॥२ हरदी समत चले फिर आयी । कीन्हि सिधासन चाँद चलाई ॥३ हुँहु कै मन के पूजी आसा । कहहिं बहुत मन भोग विलासा ॥४ अलखनिरंजन जाहि जियावइ । दई क लिखा सो मानुस पावइ ॥५ अरथ दरन सभ सोही, चाँदा जो जीउँ संसार ६ तुम्ह गुई तुम्हेंहुत जिउ देतेउँ, मरत न लागत यार ||७ टिप्पणी-(१) गारड (म० गाटिर)-विषवैद्य; गर्षका मन्त्र जाननेवाल। (३) सिधामन-देखिये टिप्पणी २५२१६ । (4) भलख निरंजन-(माय पथियोकी भाषाम) ईश्वर । जाहि-जिमको। दईश्वर; भाग्य ।