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पृष्ठ:चंदायन.djvu/२८१

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(६) दरम (द्रय)-इन (७) दार-फिरन्य, दे। ३३८-३४३ (अनुसन्ध । सम्भवत निम्नलिखित कड़वा सच है।) (बम्बई ३१) भग पद लोय या अहीरपान व पूजवानान व माजीकुन्द व शारीस्तन (टोरका भदौरों और दहेलियोंसे रडना, कुछ मारे गये, उ न गरे) सभै वहलियाँ गिरे पट आनी । नियरे मींचु दयी देह आनी ॥१ चैस वीर कोप्या सर जीउ आन । ओही धनुक परो गिड आन ॥२ जो सँभारे सो तस मारा । को रोबइ को फरइ पुकारा ॥३ एक महँ होइ उठे सोमहाई । बहु मारे बहु गरे पराई ॥४ जातहिं मरहिं जान नहिं पाएँ । आगै भाजै पार्छ निहारें ॥५ धींगे सहस बहेलिया, तिहकों मीचु घटान ६ कउया चील्ह सो (भोग) भा, जम्बुक गोघ अपान ।।७ मूल पाठ-भुग (क, है, गप)। [२] (परई ३३) गाजे रंग गुणस्ता खान गुदने माँदा व नेरूस स्टी (चंद और मोरसमा पुर क्षेत्र हरदोशे और रपन होना) रफत रहनी चै गैधाई ! चला लोर छोहि नो ठाँई ॥१ पुनि चीर ओडन कर लीन्हा । पुरुष दिमा नप पायत कीन्हा ॥२ करि के सेती सोहर सूती । चौगमी लप निंदग भूती ॥३ रुण्ड मुण्ड मह मेदिन पारा । बहु रोने बहु करहिं पुकारा ॥४ मैंयरत नदी जो भई पनवारा । टाफिन जोगिन उतगहे पारा ॥५