पृष्ठ:चंदायन.djvu/२९०

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२८१ टिप्पणी--(१) मेंमें-चीत्कार कर रोना। मीत--मित्र । होत--या। दई- ईश्वर । विडोवा-विछोह पराया। (२) सायर-सागर । पटाई-भर गया। (३) गहि-पकह कर । गुहरावह--पुकारे । (४) जोधा-उत्सुक्ता पूर्वक देखता रहा । (५) विखम उचार-विष उतारने वाला। (६) दुलह-दुलारा। - (७) जनि-मत, न । 'जिन' पाठ भी सम्भव है। उसमा भी यही तात्पर्य है। बोलचालमे दोनों ही स्प प्रचलित है। ३५३ (रोलैण्डस् २६०३ : मनेर ११८) ऐजन (वही) जरम न छूट पिरम कर याँधा । पिरम खाँड होई रिस साँधा ॥१ जिह यह चोट लागि सो जानी । के लोरक के चाँदा रानी ॥२ कोई न जान दुख काहू केरा । सोइ जान परे जिहँ पीरा ॥३ पिरम झार जिहँ हिरदै लागी । नींद न जान विवत निसि जागी ॥४ सात सरग जौ परसहिं आई । पिरम आग कैसे न बुझाई ॥५ चिरंग एक जो बाहर मारै, येहि' पिरम के झार १६ भसम होइ जल धरती, तिल एक सरग पतार" ॥७ पाटान्तर-~मनेर प्रति- दर्दमन्दी व सोजे आशिराने ईशा (मैमियोंकी व्यथा और प्रेमाग्निका उल्लेख) १-पिरम काँड अहै। 2-लागे। ३-मुसी। ४~-जानद सोद। ५-आँच । ६-हियो। ७- नीद जाई तप तप (1) निसि जागी। ८-पैसेंदु। ९-ऐहि । १०-मसम होइ जर खिन इक, धरती सरग पतार।