पृष्ठ:चंदायन.djvu/३४२

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३३३ ४४८ (रीलेण्ड्स ३२२ बम्बई ५८) दर शब रफ्तने लोरक दर सानये मैंना व दिल खुदा क्दन ऊ ( लौरकका राग्निम मैनाके पर जाना और मनोविनोद करना) मैंनर चेरिह ले अन्हवाई | मुंगिया सारि' आन पहराई ॥१ दुसरे पाट जो सारसि' । मुस रोल चख काजर सारसि ॥२ पदरी हट जतु अजीत नीसरा' । देस सुरुज चॉदा बीसरा ॥३ रात जाइ के नारि मनाई । चॉदा चाह अधिक ते पाई ॥४ बहुल दुस जो नारि पसाना । राखसि मान लौर जम जाना ॥५ कहसि सुरुज धनि चाँदा, अब कम देउतहिं दोस" १६ हम मैना जेंउ तरई, रहहिं चाँद परोस" ॥७ पाठान्तर-यम्बई प्रति- शीर्षक-गुस्ल दादर्ने कनीजगान मर मैंना रा, व कसते खास आरा स्तन व दर साना बुदन (दासियोंका मैनाको नहला कर वन्न पहनाना और मन बहलाव करना)। १-चेगें ।२-सागे । ३-जो धहि बैसारी | ४-सारी । ५--अजित निसरा । ६---सुरज तब चाँदहि विसरा । ७-तो। ८-चौदहि चाह अधिक पैमाई । ९-पहिलै । १०-यहमि मुरज धनि छादि जो मैं कीता दोस । ११-~-हमारे छह जस तरई, रहहु चाँद परोस । ४४९ (रीरेण्ड्स ३२३) सबर युनानीदने रोरक दर शहरे गोवर अज आमदने खुद (लोरकका अपने आनेका समाचार गोवर भेजना) गोवरों अपजस मात जनाई । मैनाँ रारामि चाहि सँझाई ॥१ अजयी के घर सोलिन गई । लागि गुहार पात अस भई ॥२ भा अमबार पोर दउरावा । लोरक मुनि के इझन आवा ॥३