पृष्ठ:चंदायन.djvu/३४१

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३३२ ५--चाँदे हरी । ५-चाँद । ६--जो पै देवस चाँद जो पार। ७-चारहों सरग हिडाउँ। ८-दाह । ९-दोन्हौं । ४४७ (रोरेण्ट्स ३२१ : बम्बई ५०) बुजुर्गो खुद नमूदन चाँदा व ऐहानत वर्दन मैंना (चाँदका अपनी बडाई और मैनाका अपमान करना) चाँद आपुन कियत बड़ाई । मैंनहि चूसत रही लजाई ॥१ बोल यतोल भई झुटाई' । कहसि न चाँद कहाँ से आई ॥२ घरकी चाँदै झूझ उचाया । मा' झझ जस दाउद गावा ॥३ तत्र उठि लोरक आपु जनावा । मैंनॉ रह[स]ी लोर जो पावा ॥४ लोरक चॉद तस के हरसी । जूझन कारन फिर न फरकी ॥५ चेरि सात पॉच कहें घोलसि, मैंना जाइ सँवारि ।६ आज रात मैने" घर जाओं', वाहिक है" चारि ॥७ पाठान्तर-यम प्रति- शीर्षक --बुजुर्गों व यलन्दिये खुद गुफ्तन चौदा व शनाख्तने मैंना व जग कर्दने चाँदा (चॉदका अपनी प्रशसा करना; मैनावा उसे पहचान लेना और झगडना)। इस प्रतिम पत्ति ४ नहीं है। उसरे स्थानपर पति और पनि ५ स्थानपर एक नयी पत्ति है। १-योत्त बोलत भदं जुन्हाई । २-हुत । ३-उपादा । ४-मई । ५-~यह पत्ति नहीं है । ६-चाँदहि । ७दरवी । ८-चाँदा जरी न मिरिन परखी। -मनहि । १०- पहि। ११--जाउर । १२-रात है वहि कर। पाँची पवित्र रूपसे नयी पत्ति इस प्रकार है- अगर समुह माह रही जाई । आपुन चाँद जो यात बटाई।