पृष्ठ:चंदायन.djvu/३४७

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दौलतकाबी कृत सति मैना उ लोर-चन्द्रानी दौलतकाजी अराकान नरेद थिरि थु धम्मा (श्री मुधर्म) (१६२२ १६३८ १०) की राजसमा वि थे। उन्होंने वहाँके प्रधानमन्त्री अशरफ सॉके आदेशापर 'सति मैनाउलोर चंद्रानी' नामक बॅगला काव्यकी रचना की। इम ग्रन्यो सम्बन्धमें उन्होंने लिखा है कि इस कहानीको मूल्त' साधनने टेट चौपाई और दोहोंमें कहा था । लेकिन प्रधानमन्त्री अशरफ साँधी समामें कुछ लोग ऐसे हैं जो गोहारी भाषा नहीं समझते । इसलिए अशरफ सॉने उनसे उसे घगला माषा और पाचाली (बगलामा एक अत्यन्त प्रचलित और लोकप्रिय छन्ट) छन्द में कहनका आदेश दिया। तदनुसार उन्होंने इसको रचना आरम्भ थी। पर वे उसे पूग न कर सके। उनये मृत्यु पश्चात् श्री चन्द्र सुधर्म (१६५२ १६८४ ई०) शासन कालमें उनके प्रधानमन्त्री मुलेमान आदेशमे एक दूसरे राजकवि आलाओलने उसे पूरा किया। ___ यह काव्य पहले 'सती मैना' नामसे हमीदी प्रेस, क्लबत्तासे प्रकाशित हुआ था । कुछ वर्ष हुए उसे सतेन्द्र घोपालने विश्वभारती (शान्तिनिकेतन)से प्रकाशित साहित्य प्रकाशिका (सण्ड १)में 'कवि दौलतकाजीर सती मयना ओ लोर चन्द्रानी' दर्पक्से सुसम्पादित रूपम प्रकाशित किया है। इसमे लोर और चन्द्रानीकी प्रेमक्याका वर्णन इस प्रकार है - मैनावती नामक एक राजनन्या यो, जिसका विवाह और नामक युवासे हुआ था जो अत्यन्त वीर और निर्भीक था । यह अपनी पत्नी को छोडवर नगर नगर, चन यन घूमने लगा। उसके साय नगर सभी युवक हो गये। लोर एप जगलमें चला गया वहाँ महल बनासर पेलि कुतहमै घरवालको भूल गया। इधर सेरसे वियोगमें मैंना अत्यन्त दुसी रहने लगी। वह पुरुष जातिकी कठोरताको निन्दा करती हुई उसके विरहमे अपना समय व्यतीत करने लगी। एक समय लगेर अपनी सभामें बैठा था और नाच-गान हो रहा था, तभी उसे समर मिली कि एक योगी उससे मिलने आया है और पूछने पर वह कोई जवान नहीं देता । उसवे एक हाथम सोनेरा घडा और दूसरे हाथमें एक चित्रपट है जिसपर एक नारीका चिन अंक्ति है । उसे ही वट्ट एकटर देखता रहता है। लोरने योगीको तलाल सभामें लानेशा आदेश दिया । योगी राजसमाम आते ही मस्ति हो गया । जर छिडर कर उसे होशम लाया गया। उसे अपने पास बैटावर लगेरने उससे निजन