पृष्ठ:चंदायन.djvu/३६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३५४ हो उठे। अब तक उस देहात उनका जोड देने वाला कोई न था। अब उसे गरिक जोड देने वाला मिल गया । फिर क्या था दोनों परस्पर जोड करने लगे। एक दिन मितारजइल अपनी ससुराल मुरौली गये । वहाँ उन्होने बड़े अभिमानसे लोगोंको कदती ल्डनेरे लिए ललकारा । लेकिन जब राजा वामदेवरे बेटे माहिलने उन्हें उठावर पर दिया तो वे सिसिया गये। अपनी झेंप मिटानेरे लिए बोले-गोरामे मेरे दो चेले है, उन्हीं से तुम्हारी दहन मदागिनवा विवाह क्य कर तुम्हारा गर्व चूर करूँगा। माहिल्ने सुनपर कहा-मेरी बहनसे विवाह करने वाले विसो वीरने अभी तक जन्म नहीं लिया है। उसका छ यार जन्म हुआ और हर बार वह कुमारी ही मर गयी। उससे वही विवाह पर सस्ता है, जो मुझे जीत ले। अब तक जो भी उससे शादी परनेली इमासे आये, उन्हें मारपर मुरौलीमें गाड दिया। तुम का शेती पधारते हो। मितारजदल्ने पहा-समय आनेपर देखा जायगा। और वह अपने घर लौट आये। जर मदागिन सयानी हुई तो उसके पिता वामदेवने समस्त राजाओंको अपनी बेटीमे विवाद करनेरे लिए आमन्त्रित किरा । पर विसीने उसरा निमन्नण स्लीरार नहीं किया । तर वामदेवको चिन्ता हुई। पिताको चिन्तित देस माहिल्ने कहा-मुना है गोरामे दोहरे है उनका नाम तो मुझे मादम नहीं। लेकिन मितारजहरू उनते भली भाँति परिचित हैं। आप उनरे पास पत्र लिखकर नाईने हाथ भेजिते। देखिये, ये क्या कहते हैं। टेकी बात सुनकर बामदेवले मितारजरने नाम पर लिया। माहिल्ने एक अल्ग पत्र लिगा जिसमें सम्परे साथ लिया-तुम्हारी यावपर हम टीका भेजते हैं। जिस शानमे तुम शादी करानेसो पर गये थे, देखना है यह शान तुम यहाँ तर रस्ते हो। पन पर ना मितारजरने पास पहुँचा । पर पढर मितारजदलने नाईवे पहा-बुटवेया घर पटते हुए चले जाओ और उनसे कहना कि मुरीलीसे बड़े लडका टोरा रेकर आया है। तदनुसार नाई मुद्राच्या पता उता हुआ उनके घर पहुँचा और अभिवादन परपे अपने आनेश अभिप्राय यह मुनाया । युदयचे यामदेवपी दुम्तासे परिचित था ।त. नुगौलीया नाम सुनते ही यह बहुत मद हुआ और माईसे चर जानेको यहा। उर लोरिपको यह यात शततो उसने अपने पिता को समझाया। और रिसी प्रकार टीका म्वीकार करनेो राजी किया । मुहावने सदाका तिल्क स्वार पर लिया और मुरीली गैरकर नाईने रामदेवको इसकी सूनना दी। बुटने अपने सारे सगे-सम्पपियाँको आमन्त्रित किया और देवीरी भारा