पृष्ठ:चंदायन.djvu/९९

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निरहत पथरै तिसके पाँधे । कण्ठ न सूझ अन्तर साँधे ॥२ देखि फिरे आछे पैराऊ । तिल एक नीर घटे न काऊ ॥३ नीर डरावन हरियर पार्ने । झॉसत हिये कीन्ह डर आने ॥४ जो खसि परै सो जम पॅथ जाई । परतहि माँउ मगर वेहि साई ॥५ राइ बीस एक जो चलि आवहिं, केसहिं कह न जायि ।६ दण्डी के आपुन भागॅहि, साहन जाहिं गरायि ॥७ टिप्पणी-(१) पुरिम-मनुष्यको लम्बाइक पराबर ऊँचाइ और गहराई नापनेकी इकाई। २५ (रिण्ड्म) सिफ्त हिसार गिद शहर गोवर गोयद (गोवर नगरके दुर्गका वर्णन) तिहू जाह जो कोट उनावा | कार सेत गढ पाथर लावा ॥१ हाथ तीम कर आह उँचाई । पुरिस साठ के है चौडाई ॥२ ग--.---] अनेकर लागा। ऊपर देखत ससि परि पागा ॥३ तेल धार जइस चिकनाई । ऊपर देसहिं चढ न जाई ॥४ सकर देवस चहुँ दिसि फिरि आये । सूर अथव: ओर न पाये ॥५ पीस पौर पीसो महँ, लोहे रसे केवार ।६ देवसहि रहहिं पपरिया, रात सम्हों कोटवार ॥७ टिप्पणी-(१) कोट--दुग, गढ, किल । उवाबा-ऊपर उठाया, बनवाया । कार-वाला । सत-श्वेत, सफेद । (२) साठ-सात पाठ भी सम्भव है। (३) ससि-गिरना । पागा-पाग, पगडी। (६) पौर---नगरद्वार केवार--किवाड, दरवाजा, फाटक । (७) पयरिया-द्वारपाल सम्हो-समय । कोपार-योपाल, दुगरक्षक।