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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१०

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भूमिका

[प्रथम संस्करण से]

आज हिन्दी के बहुत से उपन्यास हुए हैं जिनमें कई तरह की बातें व राजनीति भी लिखी गई है, राजदरबार के तरीके व सामान भी जाहिर किये गये हैं, मगर राजदरबार में ऐयार (चालाक) भी नौकर हुआ करते थे जोकि हरफन-मौला, याने सूरत बदलना, बहुत सी दवाओं का जानना, गाना-बजाना, दौड़ना, अस्त्र चलाना, जासूसों का काम देना वगैरह बहुत-सी बातें जाना करते थे। जब राजाओं में लड़ाई होती थी तो ये लोग अपनी चालाकी से बिना खून गिराये व पलटनों की जानें गँवाये लड़ाई खत्म करा देते थे। इन लोगों की बड़ी कदर की जाती थी। इसी ऐयारी पेशे से आज-कल बहुरूपिये दिखाई देते हैं। वे सब गुण तो इन लोगों में रहे नहीं, सिर्फ शक्ल बदलना रह गया वह भी किसी काम का नहीं। इन ऐयारों का बयान हिन्दी किताबों में अभी तक मेरी नजरों से नहीं गुजरा। अगर हिन्दी पढ़ने वाले इस मजे को देख लें तो कई बातों का फायदा हो। सबसे ज्यादा फायदा तो यह है कि ऐसी किताबों को पढ़ने वाला जल्दी किसी के धोखे में न पड़ेगा। इन सब बातों का खयाल करके मैंने यह 'चन्द्रकान्ता' नामक उपन्यास लिखा। इस किताब में नौगढ़ और विजयगढ़ दो पहाड़ी रजवाड़ों का हाल कहा गया है। इन दोनों रजवाड़ों में पहले आपस का खूब मेल रहना, फिर वजीर के लड़के की बदमाशी से बिगाड़ होना, नौगढ़ के कुमार वीरेन्द्रसिंह का विजयगढ़ की राजकुमारी चन्द्रकान्ता पर आशिक होकर तकलीफें उठाना, विजयगढ़ के दीवान के लड़के क्रूरसिंह का महाराज जयसिंह से बिगड़ कर चुनार जाना और चन्द्रकान्ता की तारीफ करके वहाँ के राजा शिवदत्तसिंह को उभाड़ लाना वगैरह-इस बीच में ऐयारी भी अच्छी तरह से दिखलाई गई है, और ये राज्य पहाड़ी होने से इसकी पहाड़ी नदियों, दरों, भयानक जंगलों और खूबसूरत एवं दिलचस्प घाटियों का बयान भी अच्छी तरह से आया है।

मैंने आज तक कोई किताब नहीं लिखी है, यह पहला श्रीगणेश है, इसलिए इसमें किसी तरह की गलती या भूल का हो जाना ताज्जुब नहीं, जिसके लिए मैं आप लोगों से क्षमा माँगता हूँ, बल्कि बड़ी मेहरबानी होगी अगर आप लोग मेरी भूल को पत्र द्वारा मुझ पर जाहिर करेंगे क्योंकि यह ग्रन्थ बहुत बड़ा है, आगे और छप रहा है, भूल मालूम हो जाने से दूसरी जिल्दों में उसका खयाल किया जायेगा।

[आषाढ़, सम्वत् 1944 वि॰]
-देवकीनन्दन खत्री