पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१०३

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चपला-बेशक हम लोगों की खबर माधवी को लग गई, मगर तुम बिल्कुल नहीं जानते कि तिलोत्तमा ने कितना फसाद मचा रखा है और इधर महल की तरफ कितनी मजबूती कर रखी है। तुम किसी तरह इधर से नहीं निकल सकते। अफसोस, अब हम लोग भारी खतरे में पड़ गये।

इन्द्रजीतसिंह-रात का तो समय है, लड़-भिड़ कर निकल जायँगे।

चपला-तुम दिलावर हो, तुम्हारा ऐसा खयाल करना बहुत मुनासिब है मगर (किशोरी की तरफ इशारा करके) इस बेचारी की क्या दशा होगी? इसके सिवाय अब सवेरा हुआ ही चाहता है।

इन्द्रजीतसिंह-फिर क्या किया जाये?

चपला-(कुछ सोच कर) क्या तुम जानते हो इस समय तिलोत्तमा कहाँ है?

इन्द्रजीतसिंह-जहाँ तक मैं खयाल करता हूँ, इस खोह के बाहर है।

चपला—यह और मुश्किल है, वह बड़ी ही चालाक है, इस समय भी जरूर किसी धुन में लगी होगी, वह हम लोगों का ध्यान दम भर के लिए भी नहीं भुलाती।

इन्द्रजीतसिंह-इस समय हमारी मदद के लिए इस महल में और भी कोई मौजूद है या अकेली तुम ही हो?

चपला-देवीसिंह, भैरोंसिंह और पण्डित बद्रीनाथ तो महल के बाहर इधर-उधर लुके-छिपे मौजूद हैं, मगर सूरत बदले हुए कमला इस सुरंग के मुहाने पर, अर्थात् बाहर वाले कमरे में खड़ी है, मैं उसे अपनी हिफाजत के लिए वहाँ छोड़ आई हूँ।

किशोरी—(चौंक कर) कमला कौन?

चपला-तुम्हारी सखी!

किशोरी-वह यहाँ कैसे आई?

चपला—इसका हाल तो बहुत लम्बा-चौड़ा है इस समय कहने का मौका नहीं, मुख्तसिर यह है कि तुमको धोखा देनेवाली ललिता को उसने पकड़ लिया और खुद तुमको छुड़ाने के लिए आई है, यहाँ हम लोगों से भी मुलाकात हो गई। (इन्द्रजीतसिंह की तरफ देख कर) बस अब यहाँ ठहर कर अपने को इस सुरंग के अन्दर ही फँसा कर मार डालना मुनासिब नहीं।

इन्द्रजीतसिंह-बेशक यहाँ ठहरना ठीक न होगा। चलो चलें, जो होगा देखा जायगा। तीनों वहाँ से चल पड़े, और सुरंग के दूसरे मुहाने अर्थात् उस कमरे में पहुँचे, जिसमें माधवी को दीवान साहब के साथ बैठे हुए इन्द्रजीतसिंह ने देखा था। वहाँ इस समय सूरत वदले हुए कमला भी मौजूद थी, और रोशनी बखूबी हो रही थी। इन तीनों को देखते ही कमला चौंक पड़ी और किशोरी को गले लगा लिया, मगर तुरन्त ही अलग होकर चपला से बोली, "सुबह की सुफेदी निकल आई है, यह बहुत ही बुरा हुआ।"

चपला—जो हो, अब कर ही क्या सकते हैं!

कमला-खैर, जो होगा देखा जायगा, जल्दी नीचे उतरो।