जिसके पीछे पड़ते हैं बला की तरह उसका सत्यानाश कर डालते हैं, पर तूने मेरी बात न मानी, अब यह दिन देखने की नौबत पहुँची।
माधवी––वीरेन्द्रसिंह का कोई ऐयार नहीं आया। इन्द्रजीतसिंह जबरदस्ती मेरे हाथ से ताली छीनकर चले गये, मैं कुछ न कर सकी।
तिलोत्तमा––आखिर तू उनका कर ही क्या सकती थी? माधवी-अब उन लोगों का क्या हाल है?
तिलोत्तमा––वे लोग लड़ते-भिड़ते और तुम्हारे सैकड़ों आदमियों को यमलोक पहुँचाते निकल गये। किशोरी को आपके दीवान साहब उठा ले गये। जब उनके हाथ किशोरी लग गई, तब उन्हें लड़ने-भिडने की जरूरत ही क्या थी? किशोरी की सरत देखकर तो आसमान की चिड़ियाएँ भी नीचे उतर आती हैं, फिर दीवान साहब क्या चीज हैं? अब तो वह दुष्ट इस धुन में होगा कि तुम्हें मार पूरी तरह से राजा बन जाय और किशोरी को रानी बनाये, तुम उसका कर ही क्या सकती हो!
माधवी––हाय, मेरे बुरे कर्मों ने मुझे मिट्टी में मिला दिया। अब मेरी किस्मत में राज्य नहीं है। अब तो मालूम होता है कि मैं भिखमंगिनों की तरह दर-दर मारी-मारी फिरूँगी।
तिलोत्तमा––हाँ, अगर किसी तरह तुम यहाँ से जान बचा कर निकल जाओगी तो भीख माँग कर भी जान बचा लोगी, नहीं तो बस यह भी उम्मीद नहीं है।
माधवी––क्या दीवान साहब मुझसे इस तरह की बेमुरौवती करेंगे?
तिलोत्तमा––अगर तुझे उस पर भरोसा है तो रह और देख कि क्या होता है, पर मैं तो अब एक पल भी टिकने वाली नहीं!
माधवी--अगर किशोरी उसके हाथ न पड़ गई होती, तो मुझे किसी तरह की उम्मीद होती, और कोई बहाना भी कर सकती थी, मगर अब तो···
इतना कह माधवी बेतरह रोने लगी, यहाँ तक कि हिचकी बँध गई और वह तिलोत्तमा के पैरों पर गिर कर बोली––
"तिलोत्तमा, मैं कसम खाती हैं कि आज से तेरे हुक्म के खिलाफ कोई काम न करूँगी।"
तिलोत्तमा––अगर ऐसा है तो मैं भी कसम खाकर कहती हूँ कि तुझे फिर इसी दर्जे पर पहुँचाऊँगी और वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों और दीवान साहब से भी ऐसा बदला लूँगी कि वे भी याद करेंगे।
माधवी––बेशक मैं तुम्हारा हुक्म मानूँगी और जो कहोगी सो करूँगी।
तिलोत्तमा––अच्छा तो आज रात को यहाँ से निकल चलना और जहाँ तक जमा-पूंजी अपने साथ ले चलते बने ले लेना चाहिए!
माधवी––बहुत अच्छा! मैं तैयार हूँ, जब चाहे चलो, मगर यह तो कहो कि मेरी इन सखी-सहेलियों की क्या दशा होगी?
तिलोत्तमा––बुरों की संगत करने का जो फल सब भोगते हैं, सो ये भी भोगेंगी। मैं इनका कहाँ तक खयाल करूँगी?