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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१०७

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किसी की खबर नहीं लेता।

दीवान अग्निदत्त किशोरी को लेकर भागे तो सीधे अपने घर में आ घुसे। वे किशोरी की सुरत पर ऐसे मोहित हुए कि तन-बदन की सुध जाती रही। सिपाहियों ने इन्द्रजीतसिंह और उनके ऐयारों को गिरफ्तार किया या नहीं, अथवा उनकी बदौलत सभी की क्या दशा हुई, इसकी परवाह तो उन्हें जरा न रही, असल बात तो यह है कि इन्द्रजीतसिंह को वे पहचानते भी न थे।

बेचारी किशोरी की क्या दशा थी और वह किस तरह रो-रोकर अपने सिर के बाल नोंच रही थी इसके बारे में इतना ही कहना बहुत है कि अगर दो दिन तक उसकी यही दशा रही तो किसी तरह जीती न बचेगी और 'हा इन्द्रजीतसिंह, हा इन्द्रजीतसिंह' कहते-कहते प्राण छोड़ देगी।

दीवान साहब के घर में उनकी जोरू और किशोरी ही के बराबर उम्र की एक कुँआरी लड़की थी जिसका नाम कामिनी था और वह जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही स्वभाव की भी अच्छी थी। दीवान साहब की स्त्री का भी स्वभाव और चाल-चलन अच्छा था, मगर वह बेचारी अपने पति के दुष्ट स्वभाव और बुरे व्यवहारों से बराबर दुःखी रहा करती थी और डर के मारे कभी किसी बात में कुछ रोक-टोक न करती, तिस पर भी आठ-दस दिन पीछे वह अग्निदत्त के हाथ से जरूर मार खाया करती।

बेचारी किशोरी को अपनी जोरू और लड़की के हवाले करके हिफाजत करने के अतिरिक्त समझाने-बुझाने की भी ताकीद कर दीवान साहब बाहर चले आये और अपने दीवानखाने में बैठ सोचने लगे कि किशोरी को किस तरह राजी करना चाहिए। यह औरत कौन और किसकी लड़की है, जिन लोगों के साथ यह थी वे लोग कौन हैं? और यहाँ आकर धूम-फसाद मचाने की उन्हें क्या जरूरत थी? चाल-ढाल और पोशाक से तो वे लोग ऐयार मालूम पड़ते थे मगर यहाँ उन लोगों के आने का क्या सबब था? इसी सब सोच-विचार में अग्निदत्त को आज स्नान तक करने की नौबत न आई। दिन भर इधर-उधर घूमते तथा लाशों को ठिकाने पहुँचाते और तहकीकात करते बीत गया, मगर किसी तरह इस बखेड़े का ठीक पता न लगा, हाँ, महल के पहरे वालों ने इतना कहा––"दो-तीन दिन से तिलोत्तमा हम लोगों पर सख्त ताकीद रखती थी और हुक्म दे गई थी कि जब मेरे चलाये बम के गोले की आवाज तुम लोग सुनो तो फौरन मुस्तैद हो जाओ और जिसको आते देखो गिरफ्तार कर लो।"

अब दीवान साहब का शक माधवी और तिलोत्तमा के ऊपर हुआ और देर तक सोचने-विचारने के बाद उन्होंने निश्चय कर लिया कि इस बखेड़े का हाल बेशक ये दोनों पहले ही से जानती थीं मगर यह भेद मुझसे छिपाये रखने का कोई विशेष कारण अवश्य है।

चिराग जलने के बाद अग्निदत्त अपने घर पहुँचा। किशोरी के पास न जाकर निराले में अपनी स्त्री को बुला कर उसने पूछा, "उस औरत की जुबानी उसका कुछ हाल-चाल तुम्हें मालूम हुआ नहीं?"

अग्निदत्त की स्त्री ने कहा, "हाँ, उसका हाल मालूम हो गया। वह महाराज