या आवाज ही सुनाई दी। रात सिर्फ दो घंटे बल्कि इससे भी कम बाकी रह गई थी। पहरे वाले टहल कर अच्छी तरह से पहरा दे रहे हैं या नहीं यह देखने के लिए तारासिंह बाहर गए और सभी को अपने काम पर मुस्तैद पाकर लौट आए। इतने ही में कमरे का दरवाजा खुला, और भैरोंसिंह को साथ लिए देवीसिंह आते दिखाई पड़े।
दोनों ऐयार सलाम करने के बाद वीरेन्द्रसिंह के पास बैठ गये मगर यह देखकर कि यहाँ अभी तक ये लोग जाग रहे हैं ताज्जुब करने लगे।
देवीसिंह––आप लोग इस समय तक जाग रहे हैं!
वीरेन्द्रसिंह––हाँ, यहाँ कुछ ऐसा ही मामला हुआ जिससे निश्चिन्त हो सो न सके।
देवीसिंह––सो क्या?
वीरेन्द्रसिंह––खैर तुम्हें भी वह मालूम हो जायेगा, पहले अपना हाल तो कहो। (भैरोसिंह की तरफ देख कर) तुमने उस औरत को पहचाना?
भैरोंसिंह––जी हाँ, बेशक वही औरत है, जो यहाँ आई थी, बल्कि वहाँ एक औरत और दिखाई दी।
वीरेन्द्रसिंह––यहाँ से जाकर तुमने क्या किया और क्या-क्या देखा, सो खुलासा कह जाओ।
भैरोंसिंह ने जो कुछ देखा था, कहने के बाद यहाँ का हाल पूछा। वीरेन्द्रसिंह ने भी यहाँ की कुल कैफियत कह सुनाई और बोले, "हम यही राह देख रहे थे कि सवेरा हो जाये और तुम लोग भी आ जाओ, तो इस कोठरी को खोलें, और देखें कि क्या है, कहीं से किसी के आने-जाने का पता लगता है या नहीं।"
कोठरी खोली गई। एक हाथ में रोशनी, दूसरे में नंगी तलवार लेकर पहले देवीसिंह कोठरी के अन्दर घुसे और तुरन्त ही बोल उठे––"वाह-वाह, यहाँ तो खूनखराबा मच चुका है!" अब राजा वीरेन्द्रसिंह, दोनों कुमार और उनके दोनों ऐयार भी कोठरी के अन्दर गये, और ताज्जुब भरी निगाहों से चारों तरफ देखने लगे।
इस कोठरी में जो फर्श बिछा हुआ था वह इस तरह से सिमट गया था जैसे कई आदमियों के वेअख्तियार उछल-कूद करने या लड़ने से इकट्ठा हो गया हो, ऊपर से वह खून से तर भी हो रहा था। चारों तरफ दीवारों पर भी खून के छींटे और लड़ते समय हाथ बहक कर बैठ जाने वाली तलवारों के निशान दिखाई दे रहे थे। बीच में एक लाश पड़ी हुई थी, मगर बेसिर की, कुछ समझ में नहीं आता था कि यह लाश किसकी है। कपड़ों में सिर्फ एक लँगोटा उसकी कमर में था। तमाम बदन नंगा, जिसमें अन्दाज से ज्यादा तेल लगा हुआ था। दाहिने हाथ में तलवार थी मगर वह हाथ भी कटा हुआ, सिर्फ जरा-सा चमड़ा लगा हुआ था, वह भी इतना कम कि अगर कोई खींचे तो अलग हो जाये। सबसे ज्यादा परेशान और बेचैन करने वाली एक चीज और दिखाई दी।
दाहिने हाथ की कटी हुई एक कलाई जिसमें फौलादी कटार अभी तक मौजूद थी, दिखाई पड़ी। आनन्दसिंह ने फौरन उस हाथ को उठा लिया और सभी लोगों की निगाह भी गौर के साथ उस पर पड़ने लगी। यह कलाई किसी नाजुक हसीन और-