पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१३४

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नहीं? इतने बदमाशों को, जो यहाँ फसाद मचा रहे थे, सिवाय तुम्हारे और कौन मार सकता था!

किन्नरी–खैर, जो होगा देखा जायगा, अब तो यह सोचना चाहिए कि हम लोग कहाँ जायें और क्या करें?

किशोरी कमला यहाँ आ जाय तो उससे राय मिला कर जो मुनासिब मालूम हो किया जाय। ओफ, यहाँ बैठे-बैठे जी घबरा गया, चलो, बाहर चलें, चाँदनी खूब निकली हुई है।

दोनों औरतें उस कोठरी के बाहर निकलीं और सहन में आकर टहलने लगीं। मौसम के मुताबिक कुछ सर्दी पड़ रही थी इसलिए दोनों ज्यादा देर तक सहन में टहल न सकीं, दालान में आकर दरी पर बैठ गई और बातचीत करने लगीं।

इस मकान के बगल में एक छोटा-सा नजरबाग था, मगर उसकी हालत ऐसा खराब हो रही थी कि उसे नजरबाग की जगह खंडहर या जंगल ही कहना मुनासिब है। नजरबाग में जाने के लिए इस मकान से एक रास्ता था, बाकी चारों तरफ उसके ऊँची-ऊंची दीवारें थीं। इस मकान में बिना भीतर वाले की मदद के कोई कमन्द लगा कर चढ़ नहीं सकता था, क्योंकि इसकी ऊपर की दीवारें इस खूबी से बनी हुई थीं कि किसी तरह कमन्द अड़ नहीं सकती थी। हाँ, अगर कोई चाहे तो कमन्द के जरिए उस नजरबाग में जरूर जा सकता था, मगर इस मकान में आने के लिए वहाँ से भी वहा दिक्कत होती।

थोड़ी देर किन्नरी और किशोरी बातें करती रहीं, इसके बाद नीचे से किवाड़ खटखटाने की आवाज आई। किशोरी ने कहा, "लो बहिन, कमला भी आ पहुँची।"

किन्नरी-खटखटाने की आवाज से तो मालूम होता है कि कमला ही है, मगर तो भी खिड़की से झाँक के मामूली सवाल कर लेना मुनासिब है।

किशोरी—ऐसा जरूर करना चाहिए, क्योंकि हम लोगों को धोखा देने के लिए दुश्मन लोग पचासों रंग लाया करते हैं।

"तुम ठहरो, मैं कुछ पूछती हूँ।" इतना कह कर किशोरी ने दरवाजे की तरफ वाली खिड़की में से झाँक कर पूछा, "गिनती पूरी हुई?" इसके जवाब में किसी ने कहा, "हाँ, पचासी तक।"

किशोरी—अच्छा, मैं नीचे आकर दरवाजा खोलती हूँ।

दरवाजा खोलने के लिए खुशी-खुशी किशोरी नीचे उतरी, मगर चौखट के पास पहुँचने के पहले ही नीचे के अँधेरे दालान में एक मोटे और कद्दावर आदमी को खड़ा देख डर के मारे चिल्ला उठी तथा उसी समय वह एक चीख मारकर बिल्कुल ही बेहोश हो गई, जब वह शैतान इस बेचारी की तरफ झपटा और हाथ तथा कमर से पकड़कर बेदर्दी के साथ एक तरफ खींच ले चला।

किशोरी के चिल्लाने की आवाज सुनते ही हाथ में नंगी तकवार लिए किन्नरी धड़धड़ाती हुई नीचे पहुँची मगर चारों तरफ घूम-घूम कर देखने पर भी उसने किसी को न पाया, बल्कि किशोरी का भी पता न लगा।