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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१३३

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करना कि आज इस मकान में दो नये आदमी घुसे हैं, मुनासिब नहीं।

तारासिंह-तो फिर क्या करना चाहिए?

कमला—मैं दरवाजे की राह से जाती हूँ। आप लोग पीछे की तरफ जाइये और कमन्द लगा कर मकान के अन्दर पहुँचिये।

इन्द्रजीतसिंह-क्या हर्ज है, ऐसा ही होगा, तुम दरवाजे की राह से जाओ।

कमला-मगर एक बात और सुन लीजिये। जब मैं इस मकान में पहुँच कर छत पर से झाँक तभी आप कमन्द फेंकिये, क्योंकि बिना मेरी मदद के कमन्द अड़ न सकेगी।

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मकान के अन्दर कमला, इन्द्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहाँ की कैफियत दिखाते हैं।

इस मकान के अन्दर छोटी-छोटी न मालम कितनी कोठरियाँ हैं पर हमें उनसे कोई मतलब नहीं, हम तो उस दालान के पास जा कर खड़े होते हैं जिसके दोनों तरफ दो कोठरियाँ और सामने लम्बा-चौडा सहन है। इस दालान में किसी तरह की सजावट नहीं, सिर्फ एक दरी बिछी हुई है और खूटियों पर कुछ कपड़े लटक रहे हैं। आधी रात का समय होने पर भी इस दालान में चिराग की रोशनी नहीं है। यह दालान ऊपर के दर्जे में है, इसके ऊपर कोई इमारत नहीं, सामने का सहन बिलकुल खुला हुआ है। चन्द्रमा की फैली हुई सुफेद चाँदनी सहन से घुसती हुई धीरे-धीरे दालान में आ रही है जिसकी रोशनी उस दालान की हर एक चीज को दिखलाने के लिए काफी है। एक तरफ की कोठरी तो बन्द है मगर दूसरी बगल वाली कोठरी का दरवाजा खुला हुआ है। यह कोठरी बहुत बड़ी नहीं है और इसके भीतर सफेद फर्श पर दो औरतें बैठी हई धीरे-धीरे कुछ बातें कर रही हैं।

हमारे पाठक इन दोनों औरतों को बखूबी पहचानते हैं इनमें से एक तो किशोरी और दूसरी वही किन्नरी है जिस पर कुँअर आनन्दसिंह रीझे हुए हैं, जो कई दफ़े आनन्दसिंह के कमरे में कोठरी के अन्दर से निकल अपनी चितवनों से उन्हें घायल कर चुकी है और साथ-साथ आप भी आशिक हो चुकी है।

किशोरी-बहिन, तुमने जो कुछ नेकी मेरे साथ की है उसे मैं किसी तरह भूल नहीं सकती। मुझसे यह कभी न होगा कि तुम्हें ऐसी हालत में छोड़ इन्द्रजीतसिंह वे पास चली जाऊँ।

किन्नरी–फिर क्या किया जाय, किस तरह उम्मीद हो कि मुझे कोई पूछेगा।

किशोरी–कमला ने मुझसे कसम खाकर कहा है कि आनन्दसिंह किन्नर की चाह में डूबे हैं। इसे भी जाने दो, आखिर तुम्हारा भी कुछ अहसान उनके ऊपर है