माधवी––मेरा भाई भीमसेन!
बाबा––शिवदत्त का लड़का भीमसेन?
माधवी––जी हाँ।
बाबा––तब तो तुम्हारा काम ज़रूर हो जायेगा।
माधवी––तो भी आपको मेरी मदद करनी ही होगी।
बाबा––मैं जरूर मदद करूँगा, जो कुछ कहो मैं करने को तैयार हूँ!
माधवी––कल भीमसेन उस मकान में जाने का उद्योग करेगा जिसमें किशोरी रहती है। उसने मौका पाते ही अपनी बहिन किशोरी को मार डालने की कसम खाई है। अगर कल वह उस मकान के अन्दर किसी तरह जा सका तो जरूर ही किशोरी को मार डालेगा। फिर मुझे किसी तरह का तरद्दुद न रहेगा और न आपसे मदद लेने की ही जरूरत पड़ेगी, लेकिन वह उस मकान के अन्दर न जा सका तो जिस तरह हो आपको ऐसी कोई तरकीब करनी पड़ेगी जिसमें किशोरी उस मकान को छोड़ दे।
बाबा––भरसक तो मेरी मदद की जरूरत ही न पड़ेगी।
माधवी––ऐसा न कहिए! अगर उस मकान में कमन्द लगाने की जगह होती तब तो कोई बात ही न थी, अब तक मैं अपना काम निकाल लिए होती।
हाँ, यह तो मैं भी जानता हूँ कि तुम्हारे पिता ने उस मकान के बनवाने में बड़ी कारीगरी खर्च की है, मगर तो भी भीमसेन ने उसके अन्दर जाने की कोई तरकीब सोची ही होगी।
माधवी––जी हाँ, देखा चाहिए, कल क्या होता है।
बाबा––अच्छा, अब तुम परसों मुझसे जरूर मिलना। अगर तुम्हारा काम हो गया तो ठीक ही है, नहीं तो चौथे दिन मैं सहज ही में तुम्हारा काम कर दूँगा।
'बहुत अच्छा' कह कर माधवी वहाँ से उठी और अपनी सखी तिलोत्तमा को साथ लिये अपने डेरे पर चली आई।
माधवी के चले जाने पर थोड़ी देर तक बाबाजी कुछ सोचते रहे, इसके बाद वेम्टी के बाहर निकले और दो-चार दफे जोर से ताली बजाई। यकायक इधर-उधर पड़ों की आड़ में से चार-पाँच आदमी निकल कर बाबाजी के पास आये और एक ने बढ़कर पूछा, "कहिये, क्या हाल है?"
बाबाजी ने कहा, "आज अब तुम लोगों की कोई जरूरत नहीं है, जहाँ चाहो चले जाओ, मगर कल एक घण्टे रात जाते-जाते तुम लोग जहाँ जरूर जुट जाओ!"
एक––क्यों, खैर तो है? मैं बिना कुछ हाल सुने जाने वाला नहीं!
बाबा––अच्छा, तो फिर यह भी सुन लो कि कल क्या होगा और हम लोग क्या करेंगे।
सभी को लेकर बाबाजी कुटी के अन्दर गये और किवाड़ बन्द कर न मालूम क्या बातचीत करने लगे।
अब हम उसी मकान में पहुँचते हैं जिसमें किशोरी और किन्नरी का डेरा है या जहाँ इन्द्रजीतसिंह को लेकर कमला गई है।