पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१३८

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किशोरी के चिल्लाने की आवाज सुन कर किन्नरी हाथ में तलवार लिए बहुत जल्द नीचे उतर गई। कमला ने किवाड़ खटखटाया है, दरवाजा खोलना चाहिए, इसका खयाल तो जाता रहा और इधर-उधर किशोरी को ढूँढ़ने लगी मगर इसे ढूँढ़ने में उसने ज्यादा देर न लगाई, दो ही चार दफे दालान और कोठरियों में घूम कर वह लौटी और सदर दरवाजा खोल कर कमला को मकान के अन्दर कर लिया।

दरवाजा खुलने में देर हुई इसी से कमला समझ गई कि भीतर कुछ गोलमाल हुआ है। अन्दर आते ही उसने पूछा, "क्यों, क्या हुआ?" जिसके जवाब में बदहवास किन्नरी केवल इतना ही कह सकी, "दरवाजा खोलने के लिए किशोरी नीचे उतरी थी, मगर न मालूम चिल्ला कर कहाँ गायब हो गई!"

कमला ने इस बात का कुछ जवाब न दिया। उसने सबसे पहले छत पर जाकर कुँअर इन्द्रजीतसिंह को कमन्द लगाने में मदद दी। जब वे और तारासिंह ऊपर चढ़ आये तो उन दोनों को भी साथ ले वह नीचे आँगन में उतर आई और किन्नरी की ही तरह संक्षेप में किशोरी के गायब हो जाने का हाल कहकर इधर-उधर ढूँढ़ने लगी। ये सब बातें थोड़ी ही देर में हो गई और अँधेरा होने पर भी बात की बात में कमला ने नीचे की कुल कोठरियों में किशोरी को ढूँढ़ डाला, परेशान और बदहवास इन्द्रजीतसिंह उसके साथ-साथ घूमते रह।

ढूँढते-ढूँढ़ते कमला जब उस कोठरी में पहुँची जिसकी पीठ खँडहर की तरफ पड़ती थी तो यकायक चाँदना मालूम पड़ा। भीतर घुसी, और तुरत ही निश्चय हो गया कि खँडहर की तरफ से कोई दीवार में सेंध लगा कर इस मकान के अन्दर घुसा और यह आफत मचा गया। उस खुलासा सेंध की राह से ये चारों आदमी भी बाहर खँडहर में निकल गये और वहाँ एक विचित्र तमाशा देखा!

2

शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन और रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है। चुनार, गयाजी और राजगृह का हाल तो उसे रत्ती-रत्ती मालूम है क्योंकि इन तीनों जगहों की खबरें पहुँचाने के लिए उसने पूरा बन्दोबस्त किया हुआ है। आज यह खबर पाकर कि गयाजी का राज्य राजा वीरेन्द्रसिंह के कब्जे में आ गया, माधवी राज ही छोड़ कर भाग गई, और किशोरी दीवान अग्निदत्त के हाथ फँसी हुई है, शिवदत्त घबड़ा उठा और तरह-तरह की बातें सोचने में इतना लीन हो गया कि तन-बदन की सुध जाती रही। किशोरी के ऊपर उसे इतना गुस्सा आया कि अगर वह यहाँ मौजूद होती तो अपने हाथ से उसके टुकड़े-टुकड़े कर डालता। इस समय भी वह यह प्रण करके उठ खड़ा हुआ कि 'जब तक