पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१४६

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से ज्यादा उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए।

आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चाँदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है, लेकिन आज की सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया है, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा मैदान में निकलें और इस चाँदनी की बहार लें, मगर घर में बैठे दरवाजे की तरफ देखा करने और उसाँसें लेने से होता ही क्या है। मर्दानगी कोई और ही चीज है, इश्क किसी दूसरी ही वस्तु का नाम है, तो भी इश्क के मारे हुए माशूक की नागिन सी जुल्फों से अपने को डॅसाना ही जवामर्दी समझते हैं और दिलबर की तिरछी निगाहों से अपने कलेजे को छलनी बनाने में ही बहादुरी मानते हैं। मगर वे लोग जो सच्चे बहादुर हैं, घर बैठे 'ओफ' करना पसन्द नहीं करते और समय पड़ने पर तलवार ही को अपना माशूक मानते हैं। देखिये, इस सर्दी और ऐसे भयानक स्थान में भी एक सच्चे बहादुर को किसी पेड़ की आड़ में बैठ जाना भी बुरा मालूम होता है।

अब रात पहर भर से भी कम बाकी है। एक पहाड़ी के ऊपर, जिसकी ऊँचाई बहुत ज्यादा नहीं तो इतनी कम भी नहीं है कि बिना दम लिए एक ही दौड़ में कोई ऊपर चढ़ जाय, एक आदमी मुंह पर नकाब डाले काले कपड़े से तमाम बदन को छिपाये इधर-उधर टहल रहा है। चारों तरफ सन्नाटा है, कोई उसे पहचानने वाला यहाँ मौजूद नहीं, शायद इसी खयाल उसने नकाब उलट दी और कुछ देर के लिए खड़े होकर मैदान की तरफ देखने लगा।

इस पहाड़ी की बगल में एक दूसरी पहाड़ी है जिसकी जड़ इस पहाड़ी से मिली हुई है। मालूम होता है कि एक पहाड़ी के दो टुकड़े हो गए हैं। बीच में डाकुओं और लुटेरों के आने-जाने लायक रास्ता है जिसे भयानक दरार कहना मुनासिब जान पड़ता है। इस आदमी की निगाह घड़ी-घड़ी उसी दर की तरफ दौड़ती है और सन्नाटा पाकर मैदान की तरफ घूम जाती है जिससे मालूम होता है कि उसकी आँखें किसी ऐसे ढूंढ़ रही हैं जिसके आने की इस समय पूरी उम्मीद है।

टहलते-टहलते उसे बहुत देर हो गई, पूरब तरफ आसमान पर कुछ-कुछ सुफेदी फैलने लगी जिसे देख यह कुछ घबराया सा हो गया और दस कदम आगे बढ़ कर मैदान की तरफ देखने लगा, साथ ही इसके चौंका और धीरे से बोल उठा, "आ पहुँचे।"

उस आदमी ने धीरे से सीटी बजाई। इधर-उधर चट्टानों की आड़ में छिपे हुए दस-बारह आदमी निकल आये जिन्हें देख वह हुकूमत के तौर पर बोला, "देखो वे लोग आ पहुँचे, अब बहुत जल्द नीचे उतर चलना चाहिए।"

बात के अन्दाज से मालूम हो गया कि वह आदमी, जो बहुत देर से पहाड़ी के ऊपर टहल रहा था उन सभी का सरदार है। अब उसने अपने चेहरे पर नकाब डाल ली और अपने-अपने साथियों को साथ लेकर तेजी के साथ पहाड़ी के नीचे उतर आने वालों का मुहाना रोक लिया।

कपड़े में लपेटी हुई एक लाश उठाए और उसे चारों तरफ से घेरे कई आदमी उस दर में घुसे। वे लोग तेज कदम बढ़ाये जा रहे थे। उन्हें स्वप्न में भी यह गुमान