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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१४७

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न था कि हम लोगों के काम में बाधा डालने वाला इस पहाड़ के बीच में से कोई निकल आएगा।

जब लाश उठाए हुए वे लोग उस दर्रे के बीच में घुसे बल्कि उन लोगों ने जब आधी दरार को तै कर लिया, तब यकायक चारों तरफ से छिपे कई आदमी उन लोगों पर टूट पड़े और हर तरह से उन्हें लाचार कर दिया। वे लोग किसी तरह भी लाश को न ले जा सके और तीन-चार आदमियों के घायल होने तथा एक के मर जाने पर उसी जगह उस लाश को छोड़ आखिर सभी को भाग ही जाना पड़ा।

दुश्मनों के भाग जाने पर उस सरदार ने जो पहले ही से उस पहाड़ी पर मौजूद था जिसका जिक्र हम कर आये हैं, अपने साथियों को पुकार कर कहा, "पीछा करने की कोई जरूरत नहीं, हमारा मतलब निकल गया। मगर यह देख लेना चाहिए कि यह किशोरी ही है या नहीं!"

एक ने बटुए में से मोमबत्ती निकाल कर जलाई और उस लाश के मुँह पर से कपड़ा हटा कर देखने के बाद कहा, "किशोरी ही तो है।" सरदार ने किशोरी की नब्ज पर हाथ रक्खा और कहा––

सरदार––ओफ! इसे बहुत तेज बेहोशी दी गई है, देखो, तुम भी देख लो!

एक––(नब्ज देख कर) बेशक बहुत ज्यादा बेहोशी दी गई है। ऐसी हालत में अक्सर जान निकल जाती है!

दूसरा––इसे कुछ कम करना चाहिए।

सरदार ने अपने बटुए में से एक डिबिया निकाली तथा खोल कर किशोरी को सुँघाने के बाद फिर नब्ज पर हाथ रक्खा और कहा, "वस इससे ज्यादा बेहोशी कम करने पर यह होश में आ जायगी, चलो उठाओ, अब यहाँ ठहरना मुनासिब नहीं है।"

किशोरी को उठा कर वे लोग उसी दर्रे की राह घूमते हुए पहाड़ी के पार हो गये और न मालूम किस तरफ चले गये। इनके जाने के बाद उसी जगह जहाँ पर लड़ाई हुई थी, छिपा हुआ एक आदमी बाहर निकला और चारों तरफ देखने लगा। जब वहाँ किसी को मौजूद न पाया तो धीरे से बोल उठा––

"मेरा पहले ही से यहाँ आ पहुँचना कैसा मुनासिब हुआ! मैं उन लोगों को खूब पहचानता हूँ जो लड़-भिड़ कर बेचारी किशोरी को ले गये। खैर, क्या मुजायका है, मुझसे भाग कर ये लोग कहाँ जायेंगे। मेरे लिए तो दोनों ही बराबर हैं, वे ले जाते तब भी उतनी ही मेहनत करनी पड़ती, और ये लोग ले गये हैं तब भी उतनी ही मेहनत करनी पड़ेगी। खैर, हरि इच्छा, अब बाबाजी को ढूँढ़ना चाहिए। उन्होंने भी इसी जगह मिलने का वादा किया था।"

इतना कह वह आदमी चारों तरफ घूमने और बाबाजी को ढूँढ़ने लगा। इस समय इस आदमी को यदि माधवी देखती तो तुरंत पहचान लेती क्योंकि यह वही साधु है जो रामशिला पहाड़ी के सामने टीले पर रहता था, जिसके पास माधवी गयी थी, या जिसने भीमसेन के हाथ से उस समय किशोरी की जान बचाई थी जब खँडहर