यह सुनकर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह ने अपने दादा महाराज सुरेन्द्रसिंह के पास जाकर अपना मतलब अर्ज किया। उन्होंने खुशी से मंजूर किया और हुक्म दिया कि शिकारगाह में इन दोनों के लिए खेमा खड़ा किया जाय और जब तक ये शिकारगाह में रहें, पाँच सौ फौज बराबर इनके साथ रहे।
शिकार खेलने का हुक्म पाकर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह बहुत खुश हुए और अपने दोनों ऐयार भैरोंसिंह और तारासिंह को साथ लेकर पाँच सौ फौज के साथ चुनार से रवाना हुए।
चुनार से पाँच कोस दक्षिण एक घने और भयानक जंगल में पहुँच कर उन्होंने डेरा डाला। दिन थोड़ा बाकी रह गया, इसलिए यह राय ठहरी कि आज आराम करें, कल सवेरे शिकार का बन्दोबस्त किया जाय मगर बनरखों[१] को शेर का पता लगाने के लिए आज ही कह दिया जाएगा। भैंसा[२] बाँधने की कोई जरूरत नहीं, शेर का शिकार पैदल ही किया जाएगा।
दूसरे दिन सवेरे बनरखों ने हाजिर होकर उनसे अर्ज किया कि इस जंगल में शेर तो हैं मगर रात हो जाने के सबब हम लोग उन्हें अपनी आँखों न देख सके, अगर आज के दिन शिकार न खेला जाय तो हम लोग देखकर उनका पता दे सकेंगे। आज के दिन भी शिकार खेलना बन्द रखा गया। पहर-भर दिन बाकी रहते इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह घोड़ों पर सवार हो अपने दोनों ऐयारों को साथ लेकर घूमने और दिल बहलाने के लिए डेरे से बाहर निकले और टहलते हुए दूर तक चले गए।
- ↑ जंगलों की हिफाजत के लिए जो नौकर रहते है उनको बनरखे कहते हैं। शिकार खेलाने का काम बनरखों का ही है। ये लोग जंगल में घूम-घूमकर और शिकारी जानवरों के पैर का निशान देख और उसी अन्दाज पर जाकर पता लगाते हैं कि शेर इत्यादि कोई शिकारी जानवर इस जंगल में हैं या नहीं, अगर हैं तो कहां हैं। बनरखों का काम है कि अपनी आँखों से देख आवें तब खबर करें।
- ↑ खास शेर के शिकार में भैसा बाँधा जाता है। भैंसा बाँधने के दो कारण हैं। एक तो शिकार को अटकाने के लिए अर्थात् जब बनरखा आकर खबर दे कि फलां जंगल में शेर है, उस वक्त या कई दिनों तक अगर शिकार खेलने वाले व्यक्ति को किसी कारण शिकार खेलने को फुरसत न हुई और शेर को अटकाना चाहा तो भैसा बाँधने का हुक्म दिया जाता है। बनरखे भैंसा ले जाते हैं और जिस जगह शेर का पता लगता है, उसके पास ही किसी भयानक और सायेदार जंगल या नाले में मजबूत खूटा गाड़कर भैसे को बाँध देते हैं। जब शेर भैसे की बू पाता है तो वहीं आता है और भैसे को खाकर उसी जंगल में कई दिनों मस्त और बेफिक्र पड़ा रहता है। इस तरकीब से दो-चार भैंसा देकर महीनों शेर को अटका लिया जाता है। शेर को जब तक खाने के लिए मिलता है वह दूसरे जंगल में नहीं जाता है। शेर का पेट अगर एक दफे खूब भर जाय तो उसे सात-आठ दिनों तक खाने की परवाह नहीं रहती। खुले भैसे को शेर जल्दी नहीं मार सकता। दूसरे जब मचान बांधकर शेर का शिकार किया चाहते हैं या एक जंगल से दूसरे जंगल में अपने सुभीते के लिए उसे ले जाना चाहते हैं, तब इसी तरह भैसे बांधकर हटाते ले जाते हैं। इसको शिकारी लोग 'मरी' भी कहते हैं।