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कुँअर इन्द्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासिंह को पता लगाने के लिए भेजें तो गया में कोई ऐयार न रह जायगा और यह बात अगर उनके पिता सुनें तो बहुत रंज हों, जिसका खयाल उन्हें सब से ज्यादा था। दोपहर दिन चढ़े तक दोनों भाई बड़े ही तरदुद में पड़े रहे, दोपहर के बाद उनका तरद्दुद कुछ कम हुआ जब पण्डित बद्रीनाथ, भैरोंसिंह और जगन्नाथ ज्योतिषी वहाँ आ मौजूद हुए। तीनों के पहुँचने से दोनों कुमार बहुत खुश हुए और समझे कि अब हमारा काम अटका न रहेगा।
कुँअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह, तारासिंह, पण्डित बद्रीनाथ, भैरोंसिंह और ज्योतिषी जी ये सब बाग की बाहरदरी में एकान्त समझ कर चले गये और बातचीत करने लगे।
आनन्दसिंह––लीजिए साहब, अब तो दुश्मन लोग यहाँ भी बहुत से हो गये।
ज्योतिषी––कोई हर्ज नहीं।
इन्द्रजीतसिंह––भैरोंसिंह, पहले तुम अपना हाल कहो, यहाँ से जाने के बाद क्या हुआ?
भैरोंसिंह––मुझे तो रास्ते ही में मालूम हो गया था कि किशोरी वहाँ नहीं है।
इन्द्रजीतसिंह––यह हाल मुझे भी मालूम हुआ था।
भैरोंसिंह––ठीक है, वह आदमी आपके पास भी आया होगा जिसने मुझे खबर दी थी।
इन्द्रजीतसिंह––खैर, तब क्या हुआ?
भैरोंसिंह––फिर भी मैं वहाँ चला गया (बद्रीनाथ और ज्योतिषीजी की तरफ इशारा करके) और इन लोगों के साथ मिल कर काम करने लगा। ये लोग दो सौ बहादुरों के साथ वहाँ पहले से मौजूद थे। आखिर नतीजा यह हुआ कि दीवान अग्निदत्त और दो-तीन उसके साथी गिरफ्तार करके चुनार भेज दिये गये। माधवी का पता नहीं कि वह कहाँ गई। वहाँ की सब रिआया अग्निदत्त से रंज थी इसलिए राजगृह अपने कब्जे में कर लेना हम लोगों को बहुत ही सहज हुआ। अब उन्हीं दो सौ आदमियों के साथ पन्नालाल को वहाँ छोड़ आया हूँ।
बद्रीनाथ––आप यहाँ का हाल तो कहिये। सुना है यहाँ बड़े-बड़े बेढब मामले हो गये हैं!
इन्द्रजीतसिंह––यहाँ का हाल भैरोंसिंह की जुबानी आपने सुना ही होगा, इसके बाद आज रात को एक अजीब बात हो गई है।
तारासिंह ने रात भर का कुल हाल उन लोगों से कहा जिसे सुन वे लोग बहुत