पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१५२

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लड़-भिड़ कर रोहतासगढ़ के किले को फतह करना बहुत मुश्किल है, चाहे फौज और दौलत में आप लोग बढ़ के क्यों न हों मगर पहाड़ के ऊपर के उस आलीशान किले के अन्दर घुसना बड़ा ही कठिन है मगर फिर भी चाहे जो हो आप लोग हिम्मत न हारें। किशोरी का खयाल चाहे न भी हो, मगर यह सोचकर कि आपके समीप का यह मजबूत किला आप ही के योग्य है, जरूर मेहनत करनी चाहिए। ईश्वर आपको विजय देगा और जहाँ तक हो सकेगा, मैं भी आपकी मदद करूँगा।"

बाबाजी की जबानी सब हाल सुनकर कुँअर इन्द्रजीतसिंह बहुत प्रसन्न हुए। एक तो किशोरी का पता लगने की खुशी, दूसरे रोहतासगढ़ के राजा से बड़ी भारी लड़ाई लड़कर जवानी का हौसला निकालने और मशहूर किले पर अपना दखल जमाने की खुशी से वे गद्गद हो गये और जोश-भरी आवाज में बाबाजी से बोले––

इन्द्रजीतसिंह––बड़े-बड़े वीरों की आत्माएँ स्वर्ग से झाँक झाँक कर देखेंगी कि रोहतासगढ़ की लड़ाई कैसी होती है, और किस तरह से हम लोग उस किले को फतह करते हैं। रोहतासगढ़ का हाल हम बखूबी जानते हैं, मगर बिना कोई सबब हाथ लगे ऐसा इरादा नहीं कर सकते थे।

बाबा––अच्छा, एक लोटा जल मँगाइये।

तुरन्त जल आया। बाबाजी ने अपनी दाढ़ी नोंचकर फेंक दी, और मुँह धो डाला। अब तो सभी ने पहचान लिया कि ये देवीसिंह हैं।

पाठक, रामशिला पहाड़ी के सामने भयानक टीले पर रहने वाले बाबाजी देवीसिंह का मिलना आप भूले न होंगे और आपको यह बात भी अब तक याद होगी, कि देवीसिंह से बाबाजी ने कहा था कि 'कल इस स्थान को हम छोड़ देंगे।' बस, बाबाजी के जाने के बाद देवीसिंह ही उनकी सूरत में उस गद्दी पर जा विराजे और जो कुछ काम किया, आप जानते ही हैं। उस दिन बाबाजी की सूरत में देवीसिंह ही थे, जिस दिन माधवी ने मिलकर कहा था कि 'हमारी मदद के लिए भीमसेन आ गया है।' असली बाबाजी भी उस पहाड़ी पर देवीसिंह से मिल चुके हैं जहाँ हमने लिखा है कि एक ही सूरत के दो बाबाजी इकट्ठे हुए हैं, और उन्होंने बाबाजी की जवानी रोहतासगढ़ का मामला देवीसिंह ने सुना था।

देवीसिंह ने अपना सारा हाल दोनों कुमारों से कहा, और आखिर में बोले, "अब रोहतासगढ़ पर हम जरूर चढ़ाई करेंगे।"

इन्द्रजीतसिंह––बहुत अच्छी बात है, हम लोगों का हौसला भी तभी दिखाई देगा! हाँ, यह तो कहिए, नाहरसिंह से कैसा बर्ताव किया जाये

देवीसिंह––कौन नाहरसिंह?

इन्द्रजीतसिंह––उस खँडहर में जो मुझसे लड़ा था! बड़ा ही बहादुर है। उसने प्रण कर रखा था कि जो मुझे जीतेगा, उसी का मैं ताबहार हो जाऊँगा। अब उसने भीमसेन का साथ छोड़ दिया, और हम लोगों के साथ रहने को तैयार है।

देवीसिंह––ऐसे बहादुर पर जरूर मेहरबानी करनी हिए, मगर आज हम