चाहता है, ऐसी हालत में किशोरी की जान का दुश्मन वह क्योंकर हो सकेगा?
इन्द्रजीतसिंह-अगर जबर्दस्ती किशोरी की शादी कर दी गई तब क्या होगा?
भैरोंसिंह-हाँ, अगर ऐसा हो तो जरूर रंज होगा, खैर आप चिन्ता न करिये, ईश्वर चाहेगा तो पाँच ही सात दिन में कुल बखेड़ा तय करे देता हूँ।
इन्द्रजीतसिंह-क्या किशोरी को वहाँ से ले आओगे?
भैरोंसिंह-रोहतासगढ़ के किले में घुस कर किशोरी को निकाल लाना तो दो तीन दिन का काम नहीं, इसके अतिरिक्त क्या रोहतासगढ़ का किला ऐयारों से खाली होगा?
इन्द्रजीतसिंह-फिर तुम पाँच-सात दिन में क्या करोगे?
भैरोंसिंह-कोई काम ऐसा जरूर करूँगा, जिससे किशोरी की शादी रुक जाये।
इन्द्रजीतसिंह-वह क्या?
भैरोंसिंह-जिस तरह बनेगा वहाँ के राजकुमार कल्याणसिंह को पकड़ लाऊँगा, जब हम लोगों का फैसला हो जायेगा तब छोड़ दूँगा।
इन्द्रजीतसिंह-हाँ, अगर ऐसा करो तो क्या बात है!
भैरोंसिंह-आप चिन्ता न कीजिये। मैं अभी यहाँ से रवाना होता हूँ, मगर आप किसी से मेरे जाने का हाल न कहियेगा।
इन्द्रजीतसिंह-क्या अकेले जाओगे?
भैरोंसिंह-जी हाँ।
इन्द्रजीतसिंह-वाह! कहीं फँस जाओ तो मैं तुम्हारी राह ही देखता रह जाऊँ कोई खबर देने वाला भी नहीं!
भैरोंसिंह-ऐसी उम्मीद न रखिये।
कुँअर इन्द्रजीत सिंह से वादा करके भैरोंसिंह रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए, मगर भैरोसिंह का अकेले रोहतासगढ़ जाना इन्द्रजीतसिंह को न भाया। उस समय तो भैरोसिह की जिद से चुप हो रहे, मगर उसके जाने के बाद कुमार ने सब हाल पण्डित बद्रीनाथ से कहकर दोस्त की मदद के लिए जाने का हुक्म दिया। हुक्म पाते ही पण्डित बद्रीनाथ भी रोहतासगढ़ रवाना हए और रास्ते ही में भैरोंसिंह से जा मिले।
दो रोज चलकर ये दोनों आदमी रोहतासगढ़ पहुँचे[१] और पहाड़ के ऊपर चढ़
- ↑ राजा शिवप्रसाद सितारे-हिन्द ने अपनी किताब 'जान जहाँनुमा' में लिखा है-"आरे से करीब पचहत्तर माल के दक्खिन-पश्चिम को झुकता हुआ हजार फीट ऊँचे पहाड़ के ऊपर का एक बड़ा मजबूत किला 'रोहतासगढ़', जिसका असल नाम 'रोहिताश्म' है, दस मील मुरब्बा की वसअत में सोन नदी के बाएँ किनारे पर उजाड़ पड़ा हुआ है। उसमें जाने के वास्ते सिर्फ एक ही रास्ता दो कोस की चढ़ाई का तंग सा बना है, बाकी सब तरफ वह पहाड़, जंगल और नदियों से ऐसा घिरा हुआ है कि किसी तौर से वहाँ आदमी का गुजर नहीं हो सकता। उस किले के अन्दर दो मान्दर अगले जमाने के अभी मौजूद हैं बाकी सब इमारतें, महल, बाग, तालाब वगैरह, जिनका अब सिर्फ निशान भर रह गया है, मुसलमान बादशाहों के बनाये हए हैं।" (ग्रन्थकर्ता)-मगर अकबर के जमाने में जो 'बिहार' का हाल लिखा गया है उससे मालूम होता है कि यह मुकाम मुसलमानों की अमलदारी के पहले से बना हुआ है।