पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१६१

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की आँखों में नाचा करता है और बढ़ती हुई उदासी और बेचैनी को किसी तरह कम नहीं होने देता।

रोहतासगढ़ महल में रहने वाली जितनी भी औरतें हैं, सभी को किशोरी की खातिरदारी का ध्यान रहने पर भी किशोरी की उदासी किसी तरह कम नहीं होती। यद्यपि उसे यहाँ किसी तरह की भी तकलीफ नहीं थी, मगर कलेजे को टुकड़े-टुकड़े करने वाली वह बात एक सायत के लिए भी उसके दिल से नहीं भूलती थी जो उसने यहाँ आने के साथ ही पीठ पर हाथ फेरते हुए महाराज के मुंह से सुनी थी, अर्थात्- “यह तो मेरी पतोहू होने लायक है !"

यों तो ऊँचे दर्जे की औरतों के जिद करने से लाचार होकर जनाने नजरबाग में किशारी को टहलना ही पड़ता था मनर वहाँ की कोई चीज उस बेचारी के जी को ढाढ़स नहीं दे सकती थी। खिले हए गुलाब के फल पर नजर पड़ते ही वह मुरझा जाती, नर्गिस की तरफ देखते ही उसकी शर्मीली आँखें पलकों की चिलमन में छिप जातीं, सरो के पास हुपत हा वह गम के बोझ से झक जाती और खशनमा फलों से लदी हई पेचीली लताएँ उसके सामने पड़ कर कँअर इन्द्रजीतसिंह की संबली जुल्फों की याद दिलातीं, जिसमें उलझी हुई उसकी जान को जीते-जी छटने की उम्मीद न थी।

रविशों को वह यार की जदाई का मैदान समझती, छोटे-छोटे रंगीन फूलों से भरे हुए पेड़ों की क्यारियों को वह घना जंगल जानती और गंजते हुए भौंरों की आवाज उसके कानों में झिल्ली की झनकार मालम होती जो जंगल में बिना मौसम पर ध्यान दिये बारहों महीने बोला करती है और इत्तिफाक से आ पड़े हुए नाजुक-बदनों के कलेजो को दहलाया करती है।

नमें हवा के झोंकों से हिलती हुई रंग-बिरंग की खूबसूरत पत्तियों को देखते ही वह काप जाती, सुन्दर और साफ मोती-सरीखे जल से भरे और बहते हुए बनावटी झरने के पास पहुंचते ही उसका दिल डूब जाता, छूटते हुए फव्वारे पर नजर पड़ते ही कलेजा मुह का आता और आँखों से टपाटप आँसू की बंदें गिरने लगतीं जिन्हें देख तरह-तरह की बोलियों से दिल खुश करने वाली बाग की नाजुक चिड़ियों से चुप न रहा जाता आर वे बोल उठती-"हाय-हाय! इस बेचारी का दिल किसी की जुदाई में खून हो गया और वह खून पानी होकर आँखों की राह निकला जाता है।"

उन कुछ जवान, नाजुक और चंचल औरतों को, जो किशोरी के साथ रहने पर मुस्तैद की गई थीं, उसकी हालत पर अफसोस आता मगर लाचार थी, क्योकि उन्ह अपनी जान बहुत प्यारी थी।

रात के समय जब किशोरी अपने को अकेली पाती, तरह-तरह की बातें सोचा करती। कभी तो वह निकल भागने की तरकीब सोचती, मगर अनहोनी जान उधर से खयाल को लौटा कर अपने प्यारे इन्द्रजीतसिंह की तरफ ध्यान लगाती और कहती कि क्या वे मेरी मदद न करेंगे और मुझे यहाँ से न छुड़ावेंगे? नहीं, जरूर छुड़ावेंगे, मगर कब? जब उन्हें यह खबर होगी कि किशोरी फलाँ जगह कैद है। हाय-हाय! कहीं ऐसा न हो कि खबर होते-होते तक मुझे यह दुनिया छोड़ देनी पड़े और दिल के अरमान दिल