पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१६४

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जो अभी तक उदासी छाई हुई थी, बिल्कुल जाती रही और तमतमाहट आ मौजूद हुई। उसकी आंखें भी जो डबडबाई हुई थीं, खुश्क हो गई और उनमें गुस्से की सुीं दिखाई देने लगी। वह इस निगाह से लाली को देखने लगी, जैसे उस पर किसी तरह की हुकूमत रखती हो।

लाली को किशोरी भी पहचानती थी, क्योंकि यह उन हसीनों में से थी जो किशोरी का दिल बहलाने और उसकी हिफाजत करने के लिए तैनात की गई थीं।

हुकूमत-भरी निगाहों से कई सायत तक लाली की तरफ देखने के बाद वह औरत फिर बोली-

"लाली, क्या तू आज पागल हो गई है जो मेरे सामने इस तरह से बेअदब होकर बोलती है?"

लाली-तू कौन है, जो तेरे साथ अदब का बर्ताव करूं?

औरत-(खड़ी होकर) तू नहीं जानती कि मैं कौन हूँ?

लाली–कुन्दन, मैं तुझे खूब जानती हूँ, मगर तू यह नहीं जानती कि तेरी नकेल मेरे हाथ में है जिससे तू मेरा कुछ नहीं कर सकती और न अपनी बेईमानी का जाल ही बेचारी किशोरी पर फैला सकती है!

इतना सुनते ही वह औरत, जिसका नाम कुन्दन था, लाल हो गई और अपने जोश को किसी तरह भी सम्हाल न सकी। छुरा, जो कमर में छिपाये हुए थी, हाथ में ले लिया और मारने के लिए लाली की तरफ झपटी। मगर लाली ने झट अपनी वगल से एक नारंगी निकालकर उसे दिखाई और पूछा, "क्या तू भूल गई कि इसमें कै फाँके हैं?"

नारंगी देखने के साथ ही और लाली के मुँह से निकले हुए शब्दों को सुनते ही उसका जोश जाता रहा, खौफ और घबराहट से उसका रंग बिल्कुल उड़ गया और वह एक चीख मार कर जमीन पर गिर पड़ी।

8

रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेन्द्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी है, और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरेन्द्रसिंह का कारचोबी खेमा शान-शौकत के साथ खड़ा है, उसके दोनों बगल कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्द सिंह के खेमे हैं। सामने और पीछे की तरफ दुपट्टी बड़े-बड़े सरदारों और बहादों का डेरा पड़ा है। बाजार लगने को तैयारियाँ हो रही हैं, लड़ाई का सामान इकट्ठा हो रहा है कि देखने से दुश्मनों का कलेजा दहल जाय।

डेरा खड़ा होने के दूसरे दिन कुँअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, पण्डित बद्रीनाथ, भैरोंसिंह, तारासिंह, जगन्नाथ ज्योतिषी, फतहसिंह (पुराने