पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१६७

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बड़ी बुराई पैदा होगी।

किशोरी––नहीं-नहीं, मेरी प्यारी लाली, मेरी जुबान से वह बात कोई दूसरा कभी नहीं सुन सकता और मैं उम्मीद करती हूँ कि तुम मुझसे उसका हाल साफ-साफ कह दोगी! उस दिन से मुझे विश्वास हो गया है कि तुम मेरी दर्दशरीक हो। अस्तु, अगर मेरा खयाल ठीक है तो तुम उसका हाल मुझे जरूर बता दो, जिससे मैं हर दम होशियार रहूँ।

लाली––अब वह तुम्हारे साथ बुराई कभी नहीं करेगी।

किशोरी––तो भी मेहरबानी करके···

लाली––खैर, बता देती हूँ। मगर खबरदार, इसका जिक्र किसी दूसरे के सामने कभी मत करना।

किशोरी––ऐसा कदापि नहीं कर सकती और तुम खुद ही जानती हो कि इस महल में सिवाय तुम्हारे कोई भी ऐसा नहीं है कि जिससे मैं दो बातें करती होऊँ।

लाली––अच्छा, तो सिवाय उस बात के, जो मैं ऊपर कह चुकी हूँ, बाकी कुल बातें उसकी झूठ थीं। वह इस मकान से भागना नहीं चाहती थी, वह तो हमारे कुमार के साथ व्याह होने की उम्मीद में खुश है। मगर जिस दिन से तुम आई हो, उस दिन से वह फिक्र में पड़ गई है, क्योंकि वह खूबसूरती और इज्जत में तुमको अपने से बहुत बढ़के समझती है और हकीकत में ऐसा ही है। उसे यह खयाल सता रहा है कि राजकुमार से पहले किशोरी की शादी हो लेगी, तब मेरी होगी और ऐसी अवस्था में किशोरी बड़ो रानी कहलावेगी और उसी के लड़के गद्दी के मालिक समझे जायेंगे। इसी वह इस फिक्र में थी कि तुम्हें मार डाले, मगर किसी ऐसे ठिकाने पर ले जाकर, जिसमें उस पर कोई शक न कर सके।

किशोरी––छि:-छिः!

लाली––मगर अब वह तुम्हारे साथ बुराई नहीं कर सकती।

किशोरी––और वह नारंगी वाला भेद क्या है?

लाली––वह मैं नहीं कह सकती। मगर तुम उसी से क्यों नहीं पूछती? अब तो वह हरदम तुम्हारी खुशामद किया करती है।

किशोरी––मैं उससे पूछ चुकी हूँ।

लाली––उसने क्या कहा?

किशोरी––उसने कहा कि लाली ने नारंगी दिखाकर यह नसीहत की कि देखो, इसमें कई फाँकें है, मगर एक साथ रहने और छिलके से ढंके रहने के कारण एक ही गिनी जाती हैं। कोई कह नहीं सकता कि इसमें के फाँके हैं, इसी तरह हम लोगों को भी रहना चाहिए।

लाली––ठीक तो कहा।

किशोरी––वाह-वाह! तुमने तो उसी का साथ दिया! एकदम छोकरी बनाकर भुलावा देने लगीं!

लाली––(हँसकर) खैर, घबराओ मत, धीरे-धीरे सब मालम हो जायगा।