पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१७२

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लाकर रथ के पास रख दिया और कुछ सोचकर धीरे से बोला, "अब कुमार नहीं समझ सकते कि उनका लश्कर किधर है और वे किस तरफ से लाये गये, उन्हें धोखे में डालकर अपनी और उनकी किस्मत का अन्दाजा लेना चाहिए।" इसके बाद वह सवार फिर अपने घोड़े पर चढ़ा और वहाँ पहुँचा जहाँ कुमार उसकी राह देख रहे थे।

कुमार––तुम कहाँ गये थे?

सवार––एक आदमी की खोज में गया था, मगर वह नहीं मिला।

कुमा––खैर, तुम अपनी सच्चाई के लिए और सबूत देने वाले थे!

सवार घोड़े पर से उतर पड़ा और कुमार से बोला, "आप घोड़े पर सवार हो लीजिए और मेरे साथ चलिए।" मगर कुमार ने मंजूर न किया। सवार ने भी घोड़े की लगाम थामी और पैदल कुमार को लिए हुए उस रथ के पास पहुँचा और सब हाल कहकर बोला, "देखिये, इसी रथ पर आप लाये गये, यही बदमाश आपको लाया है, और यह दूसरा सारथी है। मैं इत्तिफाक से आपके पास मिलने के लिए जा रहा था जो आपके काम आया। अब उस रथ का एक घोड़ा जो बचा हुआ है, उसी पर आप सवार होकर लश्कर में चले जाइये!"

कुमार––बेशक तुमने मेरी जान बचाई, इसका अहसान कभी न भूलूँगा।

सवार––क्या इसका अहसान आप मानते हैं?

कुमार––जरूर।

सवार––तो आप कुछ देकर इस अहसान का बोझ अपने ऊपर से उतार दीजिये।

कुमार––बड़ी खुशी के साथ मैं ऐसा करने को तैयार हूँ, जो कहो दूँ।

सवार––इस समय तो मैं आपसे कुछ नहीं ले सकता। मगर आप वादा करें तो जरूरत पड़ने पर आपसे कुछ माँगू और मदद लूँ!

कुमार––मैं वादा करता हूँ कि जो कुछ माँगोगे दूँगा, जब चाहे ले लो।

सवार––देखिए, फिर बदल न जाइएगा।

कुमार––कभी नहीं, यह क्षत्रियों का धर्म नहीं।

सवार––अच्छा, अब एक सबूत और देता हूँ कि बिना आपको किसी तरह का कष्ट दिये अपने घर चला जाता हूँ।

कुमार––तुम अपने चेहरे पर से नकाब तो हटाओ, जिसमें तुमको पहचान रखूँ।

सवार––यह बात भी जरूरी है।

इतना कहकर सवार ने अपने चेहरे पर से नकाब उलट दी और कुमार को हैरत में डाल दिया, क्योंकि वह एक हसीन और नौजवान औरत थी।

बेशक सिवाय किशोरी के ऐसी हसीन औरत कुमार ने कभी नहीं देखी थी। उसने अपनी तिरछी चितवन से कुमार के दिल का शिकार कर लिया और उनकी बँधी हुई टकटकी की तरफ कुछ खयाल न कर, उन्हें उसी तरह छोड़, सड़क से नीचे उतर, जंगल का रास्ता लिया।

उसके चले जाने के बाद थोड़ी देर तक तो कुमार उसी तरफ देखते रहे, जिधर

च॰ स॰-1-10