पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१७३

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वह घोड़े पर सवार हो गयी थी। इसके बाद रथ और सड़क की तरफ देखा, फिर उस घोड़े के पास गये जो रथ के दोनों घोड़ों में से जीता मौजूद था। उसकी पीठ पर जो कुछ असबाब था खोल दिया, सिर्फ लगाम रहने दी और नंगी पीठ पर सवार हो उसी तरफ का रास्ता लिया, जिधर वह नकाबपोश औरत उनके देखते-देखते चली गयी थी।

भूखे-प्यासे दोपहर तक घोड़ा दौड़ाते चले गये, मगर उस औरत का पता न लगा कि किधर गयी और क्या हुई। भूख और प्यास से परेशान हो गये और इस फिक्र में पड़े कि कहीं ठण्डा पानी मिले तो प्यास बुझावें। मगर इस जंगल में कहीं किसी सोते या झरने का पता न लगा। लाचार वह आगे बढ़ते ही गये और शाम होते तक एक ऐसे में पहुँचे, जिसके चारों तरफ तो घना जंगल था मगर बीच में सुन्दर साफ जल से लहराता हुआ एक अनूठा तालाब था।

कुँअर इन्द्रजीतसिंह उस विचित्र तालाब को देख बड़े ही विस्मित हुए और एक-टक उसकी तरफ देखने लगे। इस तालाब के बीचोंबीच एक खूबसूरत छोटा-सा मकान बना हुआ था जिसके चारों तरफ सहन था और चारों कानों में चार औरतें तीर-कमान चढ़ाये मुस्तैद थीं। मालूम होता था कि ये अभी तीर छोड़ना ही चाहती हैं। मकान की छत पर एक छोटे से चबूतरे पर भी एक औरत दिखाई पड़ी, जिसका सिर नीचे और पैर आसमान की तरफ थे। बड़ी देर तक देखने के बाद मालूम हुआ कि ये औरतें जानदार नहीं हैं बल्कि बनावटी हैं, जिन्हें पुतली कहना मुनासिब है। एक छोटी-सी डोंगी भी उसी चबूतरे के साथ रस्सी के सहारे बँधी हुई थी, जिससे मालूम होता था कि इस मकान में जरूर कोई रहता है जिसके आने-जाने के लिए यह डोंगी मौजूद है।

कुमार घोड़े की लगाम एक पत्थर से अटका कर तालाब के नीचे उतरे। हाथ-मुँह धोकर जल पिया और कुछ सुस्ताने के बाद फिर उसी मकान की तरफ देखने लगे, क्योंकि कुमार का इरादा हुआ कि तैर कर उस मकान तक जायें और देखें कि उसमें क्या है।

सूर्य अस्त होते-होते एक औरत उस मकान के अन्दर से निकली और सहन पर खड़ी हो कुमार की तरफ देखने लगी। इसके बाद हाथ के इशारे से कहा कि यहाँ से चले जाओ। कुमार ने उस औरत को साफ पहचान लिया कि यह वही नकाबपोश सवार है जिसने कुमार को रथ पर ले जाते हुए ऐयार के हाथ से बचाया था।

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अन्दर अपने मकान में बैठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने खयाल में डूबी हुई किशोरी ने सिर उठाया और दरवाजे की तरफ देखने लगी। लाली ने पहुँचकर सलाम किया और कहा, "माफ कीजिएगा, मैं बिना हुक्म के इस कमरे में आयी हूँ।"