पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१८०

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ने पास आकर सलाम किया और कहा, "रात का कुछ हाल मालूम है या नहीं?"

किशोरी-सब-कुछ मालूम है! तुम्हीं ने तो शोर मचाया था!

कुन्दन-(ताज्जुब से) यह कैसी बात कहती हो? किशोरी—तुम्हारी आवाज साफ मालूम होती थी।

कुन्दन-मैं तो चोर-चोर का शोर सुनकर वहाँ पहुँची थी और उन्हीं की तरह खुद भी चिल्लाने लगी थी।

किशोरी—(हँसकर) शायद ऐसा ही हो।

कुन्दन-क्या इसमें आपको कोई शक है?

किशोरी–बेशक। लो, यह लाली भी तो आ रही है।

कुन्दन–(कुछ घबरा कर) जो कुछ किया, उन्होंने किया।

इतने में लाली भी आकर खड़ी हो गई और कुन्दन की तरफ देखकर बोली, 'आपका वार तो खाली गया।"

कुन्दन-(घबरा कर) मैंने क्या...

लाली–बस, रहने दीजिये, आपने मेरी कार्रवाई कम देखी होगी, मगर दो घंटे पहले मैं आपकी पूरी कार्रवाई मालूम कर चुकी थी।

कुन्दन-(बदहवास होकर) आप तो कसम खा...

लाली-हाँ-हाँ, मुझे खूब याद है, मैं उसे नहीं भूलती।

किशोरी–जो हो, मुझे अब पाँच-सात दिन तक नारंगी की कोई जरूरत नहीं।

किशोरी की इस बात ने लाली और कुन्दन दोनों को चौंका दिया। लाली के चेहरे पर कुछ हँसी थी, मगर कुन्दन के चेहरे का रंग बिल्कुल ही उड़ गया था, क्योंकि उसे विश्वास हो गया कि किशोरी ने भी रात की कुल बातें सुन लीं। कुन्दन की घबराहट और परेशानी यहाँ तक बढ़ गई कि किसी तरह अपने को सम्हाल न सकी और बिना कुछ कहे वहाँ से उठ कर अपने कमरे की तरफ चली गई। अब लाली और किशोरी में बातचीत होने लगी-

लाली-मालूम होता है, तुमने भी रात भर ऐयारी की!

किशोरी–हाँ, मैं कुन्दन की तरफ छिप कर गई थी।

लाली–तब तो तुम्हें मालूम हो गया होगा कि कुन्दन तुम्हें धोखा दिया चाहती है।

किशोरी—पहले तो यह साफ नहीं जान पड़ता था, मगर जब तुम्हारी तरफ गई और तुमको किसी से बातें करते सुना तो विश्वास हो गया कि इस महल में केवल तुम्हीं से मैं कुछ भलाई की उम्मीद कर सकती हूँ।

लाली–ठीक है, कुन्दन की कुल बातें तुमने नहीं सुनीं, क्या मुझसे भी...(रुक कर) खैर, जाने दीजिए। हाँ, अब वह समय आ गया कि तुम और हम दोनों यहाँ से निकल जायें। क्या तुम मुझ पर विश्वास रखती हो?

किशोरी–बेशक, तुमसे मुझे नेकी की उम्मीद है, मगर कुन्दन बहुत बिगड़ी हुई मालूम होती है।