लाली-(सन्दूक आगे रखकर) यही है?
बुढ़िया-क्या ले आई? हाँ ठीक है, बेशक यही है। अब आगे जो कुछ करना, बहुत सम्हाल कर! ऐसा न हो कि इस आखिरी समय में मुझे कलंक लगे।
लाली–जहाँ तक हो सकेगा बड़ी होशियारी से काम करूँगी। आप आशीर्वाद दीजिए कि मेरा उद्योग सफल हो।
बुढ़िया-ईश्वर तुझे इस नेकी बदला दे। वहाँ कुछ डर तो नहीं मालूम हुआ?
लाली-दिल कड़ा करके इसे ले आई, नहीं तो मैंने जो कुछ देखा, जीते-जी भूलने योग्य नहीं। अभी तो फिर एक दफे देखना नसीब होगा। ओफ, अभी तक कलेजा काँपता है।
बुढ़िया-(मुस्कुरा कर) बेशक वहाँ ताज्जुब के सामान इकट्ठे हैं, मगर डरने की कोई बात नहीं जा। ईश्वर तेरी मदद करेगा।
लाली ने उस सन्दूकड़ी को उठा लिया और अपने खास घर में आ सन्दूकड़ी को हिफाजत से रख पलंग पर जा लेटी। सवेरे उठकर किशोरी के कमरे में गई।
किशोरी-मुझे रात-भर तुम्हारा खयाल बना रहा और घड़ी-घड़ी उठकर बाहर जाती थी कि कहीं से शोरगुल की आवाज तो नहीं आती।
लाली-ईश्वर की दया से मेरे काम में किसी तरह का विघ्न नहीं पड़ा।
किशोरी-आओ, मेरे पास बैठो! अब तो तुम्हें उम्मीद हो गई होगी कि मेरी जान बच जायेगी और मैं यहाँ से जा सकूँगी।
लाली-बेशक, अब मुझे पूरी उम्मीद हो गई।
किशोरी–सन्दूकड़ी मिली?
लाली-हाँ, यह सोचकर कि दिन को किसी तरह भी मौका न मिलेगा, उसी समय उसे मैं बूढ़ी दादी को भी दिखा आई। उन्होंने पहचान कर कहा कि बेशक यही सन्दकड़ी है। उसी रंग की वहाँ कई सन्दूकड़ियाँ थी, मगर वह खास निशान जो बूढ़ी दादी ने बताया था, देखकर मैं उसी एक को ले आई!
किशोरी-मैं भी उस सन्दूकड़ी को देखा चाहती हूँ।
लाली–बेशक मैं तुम्हें अपने यहाँ ले चल कर वह सन्दूकड़ी दिखा सकती हूँ मगर उसके देखने से तुम्हें किसी तरह का फायदा नहीं होगा। बल्कि तुम्हारे वहाँ चलने से कन्दन को खटका हो जायेगा और वह सोचेगी कि किशोरी लाली के यहाँ क्यों गई। उस सन्दूकड़ी में भी कोई ऐसी बात नहीं है जो देखने लायक हो। उसे मामूली एक छोटा-सा डिब्बा ही समझना चाहिए जिसमें कहीं ताली लगाने की जगह भी नहीं है और मजबूत भी इतनी है कि किसी तरह टूट नहीं सकती।
किशोरी–फिर वह क्यों कर खुल सकेगी और उसके अन्दर से वह चाबी क्यों कर निकलेगी जिसकी हम लोगों को जरूरत है?
लाली–रेती से रेत कर उसमें सूराख किया जायेगा।
किशोरी–देर लगेगी!
लाली-हाँ, दो दिन में यह काम होगा, क्योंकि सिवाय रात के दिन को मौका