इस तहखाने में भी दूसरी तरफ निकल जाने के लिए एक दरवाजा था जिसके पास पहुँच कर भैरोंसिंह ने मोमबत्ती बुझा दी और धीरे से दरवाजा खोल जब उस तरफ झांका तो एक बड़ी संगीन बारहदरी नजर पड़ी जिसके खम्भे संगमर्मर के थे। इस बारहदरी में दो मशाल जल रहे थे जिनकी रोशनी से वहाँ की हरएक चीज साफ मालूम होती थी और इसी से वहाँ दस-पन्द्रह आदमी भी दिखाई पड़े जिनमें रस्सियों से मुश्के बँधी हुईं तीन औरतें भी थीं। भैरोंसिंह ने पहचाना कि इन तीनों औरतों में एक किशोरी है जिसके दोनों हाथ पीठ की तरफ कस कर बँधे हुए हैं और वह नीचे सिर किए रो रही है। उसके पास वाली दोनों औरतों की भी वैसी ही दशा थी, मगर उन्हें भैरोंसिंह, आनन्दसिंह या तारासिंह नहीं पहचानते थे। उन तीनों के पीछे नंगी तलवार लिए तीन आदमी भी खड़े थे जिनकी सूरत और पोशाक से मालूम होता था कि वे जल्लाद हैं।
उस बारहदरी के बीचोंबीच चाँदी के सिंहासन पर स्याह पत्थर की एक इतनी बड़ी मूरत बैठी हुई थी कि आदमी पास में खड़ा होकर भी उस बैठी हुई मूरत के सिर पर हाथ नहीं रख सकता था। मूरत की सुरत-शकल के बारे में इतना ही लिखना काफी है कि उसे आप कोई राक्षस समझें, जिसकी तरफ आँख उठा कर देखने से डर मालूम होता था।
भैरोंसिंह, तारासिंह और आनन्दसिंह उसी जगह खड़े होकर देखने लगे कि उस दालान में क्या हो रहा है। अब घंटे की आवाज बड़े जोर से आ रही थी मगर यह नहीं मालूम होता था कि वह कहाँ बज रहा है।
उन तीनों औरतों को, जिनमें किशोरी भी थी, छह आदमियों ने अच्छी तरह मजबूती से पकड़ा और बारी-बारी से उस स्याह मूरत के पास ले गए जहाँ उसके पैरों पर जबर्दस्ती सिर रखवा कर पीछे हटे और फिर उसी के सामने खड़ा कर दिया।
इसके बाद दो आदमी एक औरत को, जिसे हमारे तीनों आदमियों में से कोई भी नहीं पहचानता था, लेकर आगे बढ़े। उस औरत के पीछे जो जल्लाद नंगी तलवार लिऐ खड़ा था, वह भी आगे बढ़ा। दोनों आदमियों ने उस औरत को स्याह मूरत के ऊपर इस जोर से ढकेल दिया कि बेचारी बेतहाशा गिर पड़ी, साथ ही जल्लाद ने एक हाथ तलवार का ऐसा मारा कि सिर कटकर दूर जा पड़ा और तड़पने लगा। इस हाल को देख वे दोनों औरतें, जिनमें बेचारी किशोरी भी थी, बड़े जोर से चिल्लाईं और बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ीं।
इस कैफियत को देख कर हमारे दोनों ऐयारों और कुँअर आनन्दसिंह की अजब हालत हो गई। गुस्से के मारे थर-थर काँपने लगे। थोड़ी देर बाद उन लोगों ने किशोरी को उठाया और उस मूरत के पास ले चले। उसके साथ ही दूसरा जल्लाद भी आगे बढ़ा। अब ये तीनों किसी तरह बर्दाश्त न कर सके। कुँअर आनन्दसिंह ने दोनों ऐयारों को ललकारा-"मारो इन जालिमों को! ये थोड़े से आदमी हैं क्या चीज!"
तीनों आदमी खंजर निकाल आगे बढ़ना ही चाहते थे कि पीछे से कई आदमियों ने आकर इन लोगों को भी पकड़ लिया। और "यही हैं, यही हैं, पहले इन्हीं को बलि देना चाहिए!" कहकर चिल्लाने लगे।