पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१९५

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जहाँ तक मैं जानती हूँ और जो कुछ मैंने सुना है, उससे तो विश्वास है कि इस अजायबघर में आने के लिए और कोई राह नहीं है।"

लाली और किशोरी अब एक ऐसे घर में पहुँची जिसकी छत ही बहुत नीची थी, यहाँ तक कि हाथ उठाने से छत छूने में आती थी। यह घर बिल्कुल अंधेरा था। लाली ने अपनी गठरी खोली और सामान निकाल कर मोमबत्ती जलाई। मालूम हुआ कि यह एक कोठरी है जिसके चारों तरफ की दीवार पत्थर की बनी हुई तथा बहुत ही चिकनी और मजबूत है। लाली खोजने लगी कि इस मकान से किसी दूसरे मकान में जाने के लिए रास्ता या दरवाजा है या नहीं।

जमीन में एक दरवाजा बना हुआ दिखा जिसे लाली ने खोला और हाथ में मोमबत्ती लिये नीचे उत्तरी। लगभग बीस-पचीस सीढ़ियाँ उतरकर दोनों एक सुरंग में पहुँचीं जो बहुत दूर तक चली गई थी। ये दोनों लगभग तीन सौ कदम ही गई होंगी कि यह आवाज दोनों के कानों में पहुँची––

"हाय, एक ही दफे मार डाल! क्यों दुख देता है!"

यह आवाज सुनकर किशोरी काँप गई और उसने रुककर लाली से पूछा, "बहिन, यह आवाज कैसी है? आवाज बारीक है और किसी औरत की मालूम होती है!"

लाली––मुझे मालूम नहीं कि यह आवाज कैसी है और न इसके बारे में बूढ़ी माँजी ने मुझे कुछ कहा ही था।

किशोरी––मालूम पड़ता है कि किसी औरत को कोई दुख दे रहा है। कहीं ऐसा न हो कि वह हम लोगों को भी सतावे। हम दोनों का हाथ खाली है, एक छुरा तक पास में नहीं।

लाली––मैं अपने साथ दो छुरे लाई हूँ, एक अपने वास्ते और एक तेरे वास्ते। (कमर से एक छुरा निकाल कर और किशोरी के हाथ में देकर) ले, एक तू रख। मुझे खूब याद है एक दफे तूने कहा था कि मैं यहाँ रहने की बनिस्बत मौत पसन्द करती हूँ, फिर क्यों डरती है? देख, मैं तेरे साथ जान देने को तैयार हूँ।

किशोरी––बेशक मैंने ऐसा कहा था और अब भी कहती हूँ। चलो बढ़ो, अब कोई हर्ज नहीं, छुरा हाथ में है और ईश्वर मालिक है।

दोनों फिर आगे बढ़ीं। बीस-पचीस कदम और आगे जाकर सुरंग खत्म हुई और दोनों एक दालान में पहुँचीं। यहाँ एक चिराग जल रहा था, कम-से-कम सेर भर तेल उसमें होगा, रोशनी चारों तरफ फैली हुई थी और यहाँ की हरएक चीज साफ दिखाई दे रही थी। इस दालान के बीचोंबीच एक खम्भा था और उसके साथ एक हसीन नौजवान और खूबसूरत औरत, जिसकी उम्र बीस वर्ष से ज्यादा न होगी, बँधी हुई थी। उसके पास ही छोटी सी पत्थर की चौकी पर साफ और हलकी पोशाक पहने एक बुड्ढा बैठा हुआ छुरे से कोई चीज काट रहा था। इसका मुँह उसी तरफ था जिधर लाली और किशोरी खड़ी-खड़ी वहाँ की कैफियत देख रही थीं। उस बूढ़े के सामने भी एक चिराग जल रहा था जिससे उसकी सूरत साफ-साफ मालूम होती थी। उस बुड्ढे की उम्र लग- भग सत्तर वर्ष के होगी, उसकी सफेद दाढ़ी नाभि तक पहुँचती थी और दाढ़ी तथा मूंछों