पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१९६

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ने उसके चेहरे का ज्यादा भाग छिपा रक्खा था।

उस दालान की ऐसी अवस्था देखकर किशोरी और लाली दोनों हिचकी और उन्होंने चाहा कि पीछे की तरफ मुड़ चलें, मगर पीछे फिरकर कहाँ जाएँ? इस विचार ने उनके पैर उसी जगह जमा दिये। उन दोनों के पैरों की आहट इस बुड्ढे ने भी पाई, सिर उठाकर उन दोनों की तरफ देखा और कहा––"वाह-वाह, लाली और किशोरी भी आ गईं! आओ-आओ, मैं बहुत देर से तुम्हारी राह देख रहा था!"

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कंचनसिंह के मारे जाने और कुँवर इन्द्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश करने लगे। राजा वीरेन्द्रसिंह से इजाजत लेकर तेजसिंह भी रवाना हुए और भेष बदल कर रोहतासगढ़ किले के अन्दर चले गये। किले के सदर दरवाजे पर पहरे का पूरा इन्तजाम था, मगर तेजसिंह की फकीरी सूरत पर किसी ने शक न किया।

साधु की सूरत बने हुए तेजसिंह सात दिन तक रोहतासगढ़ किले के अन्दर घूमते रहे। इस बीच में उन्होंने हरएक मोहल्ला, बाजार, गली, रास्ता, देवालय, धर्मशाला इत्यादि को अच्छी तरह देख और समझ लिया। कई बार दरबार में भी जाकर राजा दिग्विजयसिंह और उनके दीवान तथा ऐयारों की चाल और बातचीत के ढंग पर ध्यान दिया और यह भी मालूम किया कि राजा दिग्विजयसिंह किस-किसको चाहता है, किस-किस की खातिर करता है, और किस-किसको अपना विश्वासपात्र समझता है। इन सात दिनों के बीच में तेजसिंह को कई बार चोबदार और औरत बनने की भी जरूरत पड़ी और अच्छे-अच्छे घरों में घुसकर वहाँ की कैफियत और हालत को भी देख-सुन आये। एक दफे तेजसिंह उस शिवालय में भी गये जिसमें भैरोंसिंह और बद्रीनाथ ने ऐयारी की थी या जहाँ से कुँअर कल्याणसिंह को पकड़ ले गये थे

तेजसिंह ने उस शिवालय के रहने वालों तथा पुजारियों की अजब हालत देखी। जब से कुँअर कल्याणसिंह गिरफ्तार हुए थे, तब से उन लोगों के दिल में ऐसा डर समा गया था कि वे बात-बात में चौंकते और डरते थे। रात में एक पत्ती के खड़कने से भी किसी ऐयार के आने का गुमान होता था, साधु-ब्राह्मण की सूरत से उन्हें घृणा हो गई थी, किसी संन्यासी, ब्राह्मण या साधु को देखा और चट बोल उठे कि ऐयार है। किसी मजदूर को भी अगर मन्दिर के आगे खड़ा पाते तो चट उसे ऐयार समझ लेते और जब तक गर्दन में हाथ दे हाते के बाहर न कर देते, चैन न लेते। इत्तिफाक से आज तेजसिंह भी साधु की सूरत बने शिवालय में जा डटे। पुजारियों ने देखते ही शोर करना शुरू किया कि 'ऐयार है, ऐयार है, धरो, जाने न पाए!' बेचारे तेजसिंह बड़ा घबराये और ताज्जुब