पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
203
 


बद्रीनाथ और ज्योतिषीजी माधवी को उठाकर एक ऐसी कोठरी में ले गये जहाँ बादाकश की राह ठण्डी-ठण्डी हवा आ रही थी और उसे उसी जगह छोड़ आप बारहदरी में आये जहाँ उस औरत को, जिसने माधवी को घायल किया था, खम्भे के साथ बाँधा था। बद्रीनाथ ने धीरे से ज्योतिषीजो से कहा कि "आज कुँअर आनन्दसिंह और उनके थोड़ी ही देर बाद मैं बीस-पच्चीस आदमियों को साथ लेकर यहाँ आऊँगा। अब मैं जाता हूँ, वहाँ बहुत-कुछ काम है, केवल इतना ही कहने के लिए आया था। मेरे जाने के बाद तुम इस औरत से पूछताछ कर लेना कि यह कौन है, मगर एक बात का खौफ है।"

ज्योतिषीजी-वह क्या?

बद्रीराथ—यह औरत हम लोगों को पहचान गयी है, कहीं ऐसा न हो कि तुम महाराज को बुलाओ और वे आ जायें तो यह कह उठे कि दारोगा साहब तो राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयार हैं!

ज्योतिषीजी-जरूर ऐसा होगा, इसका भी बन्दोबस्त कर लेना चाहिए।

बद्रीनाथ-खैर, कोई हर्ज नहीं, मेरे पास मसाला तैयार है। (बटुए में से एक डिबिया निकालकर और ज्योतिषीजी के हाथ में देकर) इसे आप रखें, जब मौका हो तो इसमें से थोड़ी-सी दवा इसकी जबान पर जबर्दस्ती मल दीजियेगा, बात की बात में जुबान ऐंठ जायगी। फिर यह साफ तौर पर कुछ भी न कह सकेगी। तब जो आपके जी आवे, महाराज को समझा दें।

बद्रीनाथ वहाँ से चले गये। उनके जाने के बाद उस औरत को डरा-धमका ओर कुछ मार-पीटकर ज्योतिषीजी ने उसका हाल मालूम करना चाहा, मगर कुछ न हो सका, पहरों की मेहनत बर्बाद गयी। आखिर उस औरत ने ज्योतिषीजी से कहा, "ज्योतिषीजी, मैं आपको अच्छी तरह से जानती हूँ। आप यह न समझिए कि माधवी को मैंने मारा है, उसको घायल करने वाला कोई दूसरा ही था। खैर, इन सब बातों से कोई मतलब नहीं, क्योंकि अब तो माधवी भी आपके कब्जे में नहीं रही।"

ज्योतिषीजी-माधवी मेरे कब्जे में से कहाँ जा सकती है?

औरत-जहाँ जा सकती थी वहाँ गयी। आप जहाँ रख आये थे वहाँ जाकर देखिये, है या नहीं।

औरत की बात सुनकर ज्योतिषीजी बहुत घबराये और उठ खड़े हुए। वहाँ गये जहाँ माधवी को छोड़ आये थे। उस औरत की बात सच निकली, माधवी का वहाँ पता भी न था। हाथ में लालटेन ले घण्टों ज्योतिषीजी इधर-उधर खोजते रहे, मगर कुछ फायदा न हुआ, आखिर लौटकर फिर उस औरत के पास आये और बोले, "तेरी बात ठीक निकली, मगर अब मैं तेरी जान लिए बिना नहीं रहता, हाँ, अगर सच-सच अपना हाल बता देगी तो छोड़ दूँगा।"

ज्योतिषीजी ने हजार सिर पटका, मगर उस औरत ने कुछ भी न कहा। इसी औरत के चिल्लाने या बोलने की आवाज किशोरी और लाली ने इस तहखाने में आकर सुनी थी जिसका हाल इस भाग के पहले बयान में लिख आये हैं, क्योंकि इसी समय। लाली और किशोरी भी वहाँ आ पहुँची थीं।