पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२१४

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लगाने लगे। वह औरत छत से उतर कर नीचे चली गई और मर्द भी अपनी गठरी को, जिसे लाया था, लेकर छत से नीचे उतर आया। बजरे में नीचे दो कोठरियाँ थीं, एक में सुन्दर-सफेद फर्श बिछा हुआ था और दूसरी में एक चारपाई बिछी थी और कुछ असवाब पड़ा हुआ था। यह औरत हाथ से कुछ इशारा करके फर्श पर बैठ गई और मर्द ने एक लकड़ी की पटिया और छोटी-सी खड़िये की टुकड़ी उसके सामने रख दी और आप भी बैठ गया और दोनों में उसी लकड़ी की पटिया पर खड़िया से लिखकर बातचीत होने लगी। अब उन दोनों में जो बातचीत हुई हम नीचे लिखते हैं, परन्तु पाठक समझ रखें कि सारी बातचीत लिखकर हुई।

पहले उस औरत ने गठरी खोली और देखने लगी कि उसमें क्या है। पीतल का एक कलमदान निकला जिसे उस औरत ने खोला। पाँच-सात चिट्ठियाँ और पुर्जे निकले जिन्हें पढ़कर उसी तरह रख दिया और दूसरी चीजें देखने लगी। दो-चार तरह के रूमाल और कुछ पुराने सिक्के देखने के बाद टीन का एक बड़ा-सा डिब्बा खोला जिसके अन्दर कोई ताज्जुब की चीज थी। डिब्बा खोलने के बाद पहले कुछ कपड़ा हटाया, जो वेठन की तौर पर लगा हुआ था, इसके बाद झाँक कर उस चीज को देखा जो उस डिब्बे के अन्दर थी।

न मालूम उस डिब्बे में ऐसी क्या चीज थी कि जिसे देखते ही उस औरत की अवस्था बिल्कुल बदल गई। झाँक के देखते ही वह हिचकी और पीछे की तरफ हट गई, पसीने से तर हो गई और बदन काँपने लगा, चेहरे पर हवाई उड़ने लगी और आँखें बन्द हो गईं। उस आदमी ने फुर्ती से बेठन का कपड़ा डाल दिया और उस डिब्बे को उसी तरह बन्द कर उस औरत के सामने से हटा लिया। उसी समय बजरे के बाहर से एक आवाज आई, "नानकजी!"

नानकप्रसाद उसी आदमी का नाम था जो गठरी लाया था। उसका कद न लम्बा और न बहुत नाटा था। वदन मोटा, रंग गोरा और ऊपर के दाँत कुछ खुड़े-बुड़े से थे। आवाज सुनते ही वह आदमी उठा और बाहर आया, मल्लाहों ने डाँड़ लगाना बन्द कर दिया था, और तीन सिपाही दरवाजे पर मुस्तैद खड़े थे।

नानक-(एक सिपाही से) क्या है?

सिपाही-(पार की तरफ इशारा करके) मुझे मालूम होता है कि उस पार बहुत से आदमी खड़े हैं। देखिए, कभी-कभी बादल हट जाने से जब चन्द्रमा की रोशनी पड़ती है तो साफ मालूम होता है कि वे लोग भी बहाव की तरफ ही हटे जाते हैं जिधर हमारा बजरा जा रहा है।

नानक-(गौर से देखकर) हाँ, ठीक तो है।

सिपाही-क्या ठिकाना, शायद हमारे दुश्मन ही हों।

नानक-कोई ताज्जुब नहीं, अच्छा, तुम नाव को बहाव की तरफ जाने दो, पार मत चलो।

इतना कह कर नानकप्रसाद अन्दर गया, तब तक औरत के भी हवास ठीक हो गये थे और वह उस टीन के डिब्बे की तरफ, जो इस समय बन्द था, बड़े गौर से देख