पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२१६

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बुझा कर अपनी चारपाई पर जाकर लेट रही। नानक भी एक किनारे फर्श पर सो रहा और रात-भर नाव बेखटके चलती गई, कोई बात ऐसी नहीं हुई जो लिखने योग्य हो।

जब थोड़ी रात वाकी रही, वह औरत अपनी चारपाई से उठी और खिड़की से बाहर झाँक कर देखने लगी। इस समय आसमान बिल्कुल साफ था, चन्द्रमा के साथही-साथ तारे भी समयानुसार अपनी चमक दिखा रहे थे और दो-तीन खिड़कियों की राह इस बजरे के अन्दर भी चाँदनी आ रही थी। वल्कि जिस चारपाई पर वह औरत सोई हुई थी, चन्द्रमा की रोशनी अच्छी तरह पड़ रही थी। वह औरत धीरे से चारपाई के नीचे उतरी और उस संदूक को खोला जिसमें नानक का लाया हुआ टीन का डिब्बा रखवा दिया था। डिब्बा उसमें से निकाल कर चारपाई पर रक्खा और सन्दूक बन्द करने के बाद दूसरा संदूक खोलकर उसमें से एक मोमबत्ती निकाली और चारपाई पर आकर बैठ रही। मोमबत्ती में से मोम लेकर उसने टीन के डिब्बे की दरारों को अच्छी तरह बन्द किया और हर एक जोड़ में मोम लगाया जिसमें हवा तक भी उसके अन्दर न जा सके। इस काम के बाद वह खिड़की के बाहर गर्दन निकाल कर बैठी और किनारे की तरफ देखने लगी। दो माँझी धीरे-धीरे डाँड़ खे रहे थे। जब वे थक जाते तो दूसरे दो को उठा कर उसी काम पर लगा देते और आप आराम करते।

सवेरा होते-होते वह नाव एक ऐसी जगह पहुँची जहाँ किनारे पर कुछ आबादी थी, बल्कि गंगा के किनारे ही एक ऊँचा शिवालय भी था और उतर कर गंगाजी में स्नान करने के लिए सीढ़ियाँ भी बनी हुई थीं। औरत ने उस मुकाम को अच्छी तरह देखा और जब वह बजरा उस शिवालय के ठीक सामने पहुंचा तब उसने टीन का डिब्बा जिसमें कोई अद्भुत बस्तु थी और जिसके सूराखों को उसने अच्छी तरह मोम से बन्द कर दिया था, जल में फेंक दिया और फिर अपनी चारपाई पर लेट रही। यह हाल किसी दूसरे को मालूम न हुआ। थोड़ी ही देर में वह आबादी पीछे रह गई और बजरा भी दूर निकल गया।

जब अच्छी तरह सवेरा हुआ, सूर्य की लालिमा निकल आई, तो उस औरत के हुक्म के मुताबिक बजरा एक जंगल के किनारे पहुँचा। उस औरत ने किनारे-किनारे चलने का हुक्म दिया। यह किनारा इसी पार का था जिस तरफ काशी पड़ती है या जिस हिस्से से बजरा खोलकर सफर शुरू किया गया था।

बजरा किनारे-किनारे जाने लगा और वह औरत किनारे के दरख्तों को बड़े गौर से देखने लगी। जंगल गुंजान और रमणीक था, सुबह के सुहावने समय में तरहतरह के पक्षी बोल रहे थे, हवा के झपेटों के साथ जंगली फलों की मीठी खुशबू आ रही थी। वह औरत एक खिड़की में सिर रक्खे जंगल की शोभा देख रही थी। यकायक उसकी निगाह किसी चीज पर पड़ी जिसे देखते ही वह चौंकी और बाहर आकर बजा रोकने और किनारे लगाने का इशारा करने लगी।

बजरा किनारे लगाया गया और वह गूँगी औरत अपने सिपाहियों को कुछ इशारा करके नानक को साथ लेकर नीचे उतरी।

घण्टे-भर तक वह जंगल में घूमती रही। इसी बीच में उसने अपने जरूरी काम