और नहाने-धोने से छुट्टी पा ली और तब बजरे में आकर कुछ भोजन करने के बाद उसने अपनी मर्दानी सूरत बनाई। चुस्त पायजामा, घुटने के ऊपर तक का चपकन, कमरबन्द, सिर से बड़ा-सा मुंडासा बाँध और ढाल-तलवार-खंजर के अलावा एक छोटी-सी पिस्तौल, जिसमें गोली भरी हुई थी, कमर में छिपा और थोड़ी-सी गोली-बारूद भी पास रख बजरे से उतरने के लिए तैयार हुई।
नानक ने उसकी ऐसी अवस्था देखी तो सामने अड़ कर खड़ा हो गया और इशारे से पूछा कि अब हम क्या करें? इसके जवाब में उस औरत ने पटिया और खड़िया माँगी और लिख-लिखकर दोनों में बातचीत होने लगी।
औरत-तुम इसी बजरे पर अपने ठिकाने चले जाओ। मैं तुमसे आ मिलूँगी!
नानक—मैं किसी तरह तुम्हें अकेला नहीं छोड़ सकता, तुम खूब जानती हो कि तुम्हारे लिए मैंने कितनी तकलीफें उठाई हैं और नीच-से-नीच काम करने को तैयार रहा हूँ।
औरत-तुम्हारा कहना ठीक है, मगर मुझ गूँगी के साथ तुम्हारी जिन्दगी खुशी से नहीं बीत सकती। हाँ, तुम्हारी मुहब्बत के बदले में तुम्हें अमीर किये देती हूँ, जिसके जरिये तुम खूबसूरत-से-खूबसूरत औरत ढूँढ़कर शादी कर सकते हो।
नानक-अफसोस, आज तुम इस तरह की नसीहत करने पर उतारू हुई और मेरी सच्ची मुहब्बत का कुछ खयाल न किया। मुझे धन-दौलत की परवाह नहीं और न मुझे तुम्हारे गूँगी होने का रंज है। बस, मैं इस बारे में ज्यादा बातचीत नहीं करना चाहता, या तो मुझे कबूल करो या साफ जवाब दो ताकि मैं इसी जगह तुम्हारे सामने अपनी जान देकर हमेशा के लिए छुट्टी पाऊँ। मैं लोगों के मुँह से यह नहीं सुनना चाहता कि 'रामभोली के साथ तुम्हारी मुहब्बत सच्ची न थी और तुम कुछ न कर सके।'
रामभोली—(गूंगी औरत): अभी मैं अपने कामों से निश्चिन्त नहीं हुई, जब आदमी बेफिक्र होता है तो शादी-ब्याह और हँसी-खुशी की बातें सूझती हैं, मगर इसमें शक नहीं कि तुम्हारी मुहब्बत सच्ची है और मैं तुम्हारी कद्र करती हूँ।
नानक-जब तक तुम अपने कामों से छुट्टी नहीं पातीं, मुझे अपने साथ रक्खो, मैं हर काम में तुम्हारी मदद करूँगा और जान तक दे देने को तैयार रहूँगा।
रामभोली-खैर, मैं इस बात को मंजूर करती हूँ, सिपाहियों को समझा दो कि बजरे को ले जायँ और इसमें जो चीजें हैं, अपनी हिफाजत में रक्खें, क्योंकि वह लोहे का डिब्बा भी जो तुम कल लाये थे, मैं इसी नाव में छोड़े जाती हूँ।
नानकप्रसाद खुशी के मारे ऐंठ गये। बाहर आकर सिपाहियों को बहुत-कुछ समझाने-बुझाने के बाद आप भी बदन पर हर्बे लगा हर तरह से लैस हो, साथ चलने को तैयार हो गए। रामभोली और नानक बजरे के नीचे उतरे। इशारा पाकर माँझियों ने बजरा खोल दिया और वह फिर बहाव की तरफ जाने लगा।
नानक को साथ लिये हुए रामभोली जंगल में घुसी। थोड़ी ही दूर जाकर वह एक ऐसी जगह पहुँची जहाँ बहुत-सी पगडण्डियाँ थीं वहां खड़ी होकर चारों तरफ देखने लगी। उसकी निगाह एक कटे हुए साखू के पेड़ पर पड़ी जिसके पत्ते सूखकर गिर चुके