पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२१८

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थे। वह उस पेड़ के पास जाकर खड़ी हो गई और इस तरह चारों तरफ देखने लगी जैसे कोई निशान ढूँढ़ती हो। उस जगह की जमीन बहुत पथरीली और ऊँची-नीची थी। लगभग पचास गज की दूरी पर एक पत्थर का ढेर नजर आया जो आदमी के हाथ का बनाया हुआ मालूम होता था। वह उस पत्थर के ढेर के पास गई और कुछ दम लेने या सुस्ताने के लिए बैठ गई। नानक ने अपना कमरबन्द खोला और एक पत्थर की चट्टान झाड़कर उसे बिछा दिया, रामभोली उसी पर जा बैठी और नानक को अपने पास बैठने का इशारा किया।

ये दोनों आदमी अभी सुस्ताये भी न थे कि सामने से एक सवार सुर्ख पोशाक पहने इन्हीं दोनों की तरफ आता हुआ दिखाई पड़ा। पास आने पर मालूम हुआ कि यह एक नौजवान औरत है जो बड़े ठाठ के साथ हर्के लगाये मर्दो की तरह घोड़े पर बैठी बहादुरी का नमूना दिखा रही है। वह रामभोली के पास आकर खड़ी हो गई और उस पर एक भेद वाली नजर डालकर हँसी। रामभोली ने भी उसकी हँसी का जवाब मुस्कराकर दिया और कनखियों से नानक की तरफ इशारा किया। उस औरत ने रामभोली को अपने पास बुलाया, और जब वह घोड़े के पास जाकर खड़ी हो गई तो आप घोड़े से नीचे उतर पड़ी। कमर से एक छोटा-सा बटुआ खोल एक चिट्ठी और एक अंगूठी निकाली जिस पर एक सुर्ख नगीना जड़ा हुआ था और रामभोली के हाथ में रख दिया।

रामभोली का चेहरा गवाही दे रहा था कि वह इस अँगूठी को पाकर हद से ज्यादा खुश हुई है। रामभोली ने इज्जत देने के ढँग पर उस अँगूठी को सिर से लगाया और इसके बाद अपनी उँगली में पहन लिया, चिट्ठी कमर में खोंसकर फुर्ती से उस घोड़े पर सवार हो गई और देखते-ही-देखते जंगल में घुसकर नजरों से गायब हो गई।

नानकप्रसाद यह तमाशा देख भौचक-सा रह गया, कुछ करते-धरते नहीं बन पड़ा। न मुँह से कोई आवाज निकली और न हाथ के इशारे ही से कुछ पूछ सका, पूछता भी तो किससे? रामभोली ने तो नजर उठाके उसकी तरफ देखा तक नहीं। नानक बिल्कुल नहीं जानता था कि यह सुर्ख पोशाक वाली औरत कौन है जो यकायक यहाँ आ पहुँची और जिसने इशारेबाजी करके रामभोली को अपने घोड़े पर सवार कर भगा दिया। वह औरत नानक के पास आई और हँस के बोली-

औरत-वह औरत जो तेरे साथ थी, मेरे घोड़े पर सवार होकर चली गई, कोई हर्ज नहीं, मगर तू उदास क्यों हो गया? क्या तुझसे और उससे कोई रिश्तेदारी थी?

नानकप्रसाद-रिश्तेदारी थी तो नहीं, मगर होने वाली थी, तुमने सब चौपट कर दिया।

औरत-(मुस्कुरा कर) क्या उससे शादी करने की धुन समाई थी?

नानकप्रसाद-बेशक ऐसा ही था। वह मेरी हो चुकी थी, तुम नहीं जानतीं कि मैंने उसके लिए कैसी-कैसी तकलीफें उठाईं। अपने बाप-दादों की जमींदारी चौपट की और उसकी गुलामी करने पर तैयार हुआ।

औरत-(बैठ कर) किसकी गुलामी?