पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२२१

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गंगाजी की तरफ रवाना हुआ कि अगर हो सके तो किनारे-किनारे चलकर उस बजरे तक पहुँच जाय, मगर यह भी न हो सका, क्योंकि उस जंगल में बहुत-सी पगडण्डियाँ थीं जिन पर चलकर वह रास्ता भूल गया और किसी दूसरी ही तरफ जाने लगा।

नानक लगभग आधा कोस ही गया होगा कि प्यास के मारे बेचैन हो गया। वह जल खोजने लगा, मगर उस जंगल में कोई चश्मा या सोता ऐसा न मिला जिससे प्यास बुझाता। आखिर घूमते-घूमते उसे पत्तों की बनी एक झोंपड़ी नजर पड़ी जिसे वह किसी फकीर की कुटिया समझकर उसी तरफ चल पड़ा। मगर वहाँ पहुँचने पर मालूम हुआ कि उसने धोखा खाया। उस जगह कई पेड़ ऐसे थे जिनकी डालियाँ झुककर और आपस में मिलकर ऐसी हो रही थीं कि दूर से झोंपड़ी मालूम पड़ती थी, तो भी नानक के लिए वह जगह बहुत उत्तम सिद्ध हुई। क्योंकि उन्हीं पेड़ों में उसे एक चश्मा साफ पानी का बहता हुआ दिखाई पड़ा जिसके दोनों तरफ खुशनुमा सायेदार पेड़ लगे हुए थे जिन्होंने एक तौर पर उस चश्मे को भी अपने साये के नीचे कर रखा था। नानक खुशी-खुशी-खुशी चश्मे के किनारे पहुँचा और हाथ-मुँह धोने के बाद जल पीकर आराम करने के लिए बैठ गया।

थोड़ी देर चश्मे के किनारे बैठे रहने के बाद दूर से कोई चीज पानी में बह कर इसी तरफ आती हुई नानक ने देखी। पास आने पर मालूम हुआ कि कोई कपड़ा है। वह जल में उतर गया और कपड़े को खींच लाकर गौर से देखने लगा क्योंकि यह वही कपड़ा था जो बजरे से उतरते समय रामभोली ने अपनी कमर में लपेट रखा था।

नानक ताज्जुब में आकर देर तक उस कपड़े को देखता और तरह-तरह की बातें सोचता रहा। रामभोली उसके देखते-देखते घोड़े पर सवार हो चली गयी थी, फिर उसे क्योंकर विश्वास हो सकता था कि यह कपड़ा रामभोली का है। तो भी उसने कई दफे अपनी आँखें मलीं और उस कपड़े को देखा, आखिर विश्वास करना ही पड़ा कि यह रामभोली की ही चादर है। रामभोली से मिलने की उम्मीद में वह चश्मे के किनारे-किनारे रवाना हुआ, जबकि उसे इस बात का गुमान हुआ कि घोड़े पर सवार होकर चले जाने के बाद रामभोली जरूर इसी चश्मे के किनारे पहुँची होगी और किसी सबब से यह कपड़ा जल में गिर पड़ा होगा।

नानक चश्मे के किनारे-किनारे कोस-भर के लगभग चला गया और चश्मे के दोनों तरह सायेदार पेड़ मिलते गये, यहाँ तक कि दूर से उसे एक छोटे से मकान की सफेदी नजर आई। वह यह सोचकर खुश हुआ कि शायद इसी मकान में रामभोली से मुलाकात हो जाय। कदम बढ़ता हुआ तेजी से जाने लगा और थोड़ी देर में उस मकान के पास जा पहुँचा।

वह मकान चश्मे के बीचोंबीच में पुल के तौर पर बना हुआ था। चश्मा बहुत चौड़ा न था, उसकी चौड़ाई बीस-पचीस हाथ से ज्यादा न होगी। चश्मे के दोनों पार की जमीन इस मकान के नीचे आ गई थी और बीच में पानी बह जाने के लिए नहर की चौड़ाई के बराबर पुल की तरह का एक दर बना हुआ था। नानक इस मकान को देख