पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
214
 


कर बहुत ही खुश हुआ और सोचने लगा कि यह जरूर किसी मनचले शौकीन का बनवाया हुआ होगा। यहाँ से इस चश्मे और चारों तरफ के जंगल की बहार खूब ही नजर आती है। इस मकान के अन्दर चलकर देखना चाहिए, खाली है या कोई इसमें रहता है। नानक उस मकान के सामने की तरफ गया। उसकी कुर्सी बहुत ऊँची थी, पन्द्रह सीढ़ियां चढ़ने के बाद वह दरवाजे पर पहुंचा। दरवाजा खुला हुआ था, बेधड़क अन्दर घुस गया।

इस मकान के चारों कोनों में चार कोठरियाँ और चारों तरफ चार दालान बरामदों के तौर पर थे जिसके आगे कमर बराबर ऊँचा जंगला लगा हुआ था अर्थात् हरएक दालान की दोनों बगल कोठरियाँ पड़ती थीं और बीचोंबीच में एक भारी कमरा था। इस मकान में किसी तरह की सजावट न थी, मगर साफ था।

दरवाजे के अन्दर पैर रखते ही बीच वाले कमरे में बैठे हुए एक साधु पर नानक की निगाह पड़ी। वह मृगछाले पर बैठा हुआ था। उसकी उम्र अस्सी वर्ष से भी ज्यादा होगी। उसके बाल रुई की तरह सफेद हो रहे थे, लम्बे-लम्बे सिर के बाल सूखे और खुले रहने के सबब खूब फैले हुए थे, और दाढ़ी नाभि तक लटक रही थी। कमर में मूंज की रस्सी के सहारे कौपीन थी, और कोई कपड़ा उसके बदन पर न था, गले में जनेऊ पड़ा हुआ था और उसके दमकते हुए चेहरे पर बुजुर्गी और तपोबल की निशानी पाई जाती थी। जिस समय नानक की निगाह उस साधु पर पड़ी वह पद्मासन में बैठा हुआ ध्यान में था, आँखें बन्द थीं और हाथ जाँघों पर पड़े हुए थे। नानक उसके सामने जाकर देर तक खड़ा रहा, मगर उसे कुछ खबर न हुई। नानक ने सिर उठाकर चारों तरफ अच्छी तरह देखा, मगर सिवाय बड़ी-बड़ी दो तस्वीरों के, जिन पर पर्दा पड़ा हुआ था और जो साधु के पीछे की तरफ दीवार के साथ लगी हुई थीं, और कहीं कुछ दिखाई न पड़ा।

नानक को ताज्जुब हुआ और वह सोचने लगा कि इस मकान में किसी तरह का सामान नहीं है, फिर महात्मा का गुजर क्योंकर चलता होगा? और वे दोनों तस्वीरें कैसी हैं जिनका रहना इस मकान में जरूरी समझा गया! इसी फिक्र में वह चारों तरफ घूमने और देखने लगा। उसने हरएक दालान और कोठरी की सैर की, मगर कहीं एक तिनका भी नजर न आया। हाँ, एक कोठरी में वह नहीं जा सका, जिसका दरवाजा बन्द था, मगर जाहिर में कोई ताला या जंजीर उसके दरवाजे में दिखाई न दिया। मालूम नहीं, वह क्योंकर बन्द था। घूमता-फिरता नानक बगल के दालान में आया और बरामदे से झांक कर नीचे की बहार देखने लगा और इसी में उसने घण्टाभर बिता दिया।

घूम-फिरकर पुनः बाबाजी के पास गया, मगर उन्हें उसी तरह आँखें बन्द किए बैठा पाया। लाचार इस उम्मीद में एक किनारे बैठ गया कि आखिर कभी तो आँख खुलेगी। शाम होते-होते बगल की कोठरी में से, जिसका दरवाजा बन्द था और जिसके अन्दर नानक न जा सका था, शंख बजने की आवाज आई। नानक को बड़ा ही ताज्जुब