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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२२५

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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी थी जब नामक के कानों में दो आदमियों की बातचीत की आवाज आई। वह गौर से सुनने लगा क्योंकि जो कुछ बातचीत हो रही थी उसे वह अच्छी तरह सुन और समझ सकता था। नीचे लिखी बातें उसने सुनी, आवाज बारीक होने से नानक ने समझा कि वे दोनों औरतें हैं––

एक––नानक ने इश्क को दिल्लगी समझ लिया।

दूसरी––इस कम्बख्त को सूझी क्या जो अपना घर-बार छोड़कर इस तरह एक औरत के पीछे निकल पड़ा?

एक––यह तो उसी से पूछना चाहिए।

दूसरी––बाबाजी ने उससे मिलना मुनासिब न समझा। मालूम नहीं, इसका क्या सबब है।

एक––जो हो, मगर यह नानक आदमी बहुत ही होशियार और चालाक है, ताज्जुब नहीं कि उसने जो कुछ इरादा कर रक्खा है, उसे पूरा करे!

दूसरी––यह जरा मुश्किल है, मुझे उम्मीद नहीं कि रानी इसे छोड़ दे क्यों कि वह इसके खून की प्यासी हो रही है। हाँ, अगर यह उस बजरे पर पहुँच कर वह डिब्बा अपने कब्जे में कर ले, तो फिर इसका कोई कुछ न कर सकेगा।

एक––(हँस कर, जिसकी आवाज नानक ने अच्छी तरह सुनी) यह तो हो नहीं सकता।

दूसरी––खैर, इन बातों से अपने को क्या मतलब? हम लौंडियों में इतनी अक्ल कहाँ कि इन बातों पर बहस करें।

एक––क्या लौंडी होने से अक्ल में बट्टा लग जाता है?

दूसरी––नहीं, मगर असली बातों की लौंडियों को खबर ही कब होती है!

एक––मुझे तो खबर है।

दूसरी––सो क्या?

एक––यही कि दम-भर में नानक गिरफ्तार कर लिया जायेगा। बस अब बात-चीत करना मुनासिब नहीं, हरिहर आता ही होगा।

इसके बाद फिर नानक ने कुछ न सुना मगर इन बातों ने उसे परेशान कर दिया, डर के मारे काँपता हुआ उठ बैठा और चुपचाप यहाँ से भाग चलने पर मुस्तैद हुआ धीरे से किवाड़ खोलकर कोठरी के बाहर आया, चारों तरफ सन्नाटा था। इस मकान से बाहर निकलकर जंगल में भालू, चीते या शेर के मिलने का डर जरूर था मगर इस में रहकर उसने बचाव की कोई सूरत न समझी, क्योंकि उन दोनों औरतों की बातों ने उसे हर तरह से निराश कर दिया था। हाँ बजरे पर पहुँच उस डिब्बे पर कब्जा कर लेने के खयाल ने उसे बेबस कर दिया था और जहाँ तक जल्द हो सके, बजरे तक पहुँचना उसने अपने लिए उत्तम समझा।

नानक बरामदे से होता हुआ सदर दरवाजे पर आया और सीढ़ी के नीचे उतरना ही चाहता था कि दूसरे दालान में से झपटते हुए कई आदमियों ने आकर उसे गिरफ्तार कर लिया। उन आदमियों ने जबर्दस्ती नानक की आँखें चादर से बाँध दीं