पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२३०

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इनाम के तौर पर तुम जो माँगोगे, सो दिया जायगा।

नानक––वह क्या?

औरत––कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की जान, जो तुम्हारे कब्जे में है, वह महारानी के कब्जे में दे दो।

नानक––(क्रोध के मारे लाल आँखें निकाल कर) कम्बख्त, खबरदार! फिर ऐसी बात जुबान पर भी न लाना! मैं नहीं जानता था कि ऐसी खूबसूरत मण्डली कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की दुश्मन निकलेगी। तुझ ऐसी हजारों को मैं उन पर न्यौछावर करता हूँ! बस, मालूम हो गया कि तुम लोग सिर्फ कठपुतलियाँ हो। किसकी ताकत है जो मुझे मारे या मेरे साथ किसी तरह की जबर्दस्ती करे!

उस औरत का चेहरा नानक की तरह यह बात सुनकर क्रोध के मारे लाल हो गया, बल्कि और औरतें भी जो वहाँ मौजूद थीं, नानक की दबंगता देख क्रोध के मारे काँपने लगीं, मगर महारानी के चेहरे पर क्रोध की निशानी न थी।

औरत––(तलवार खींचकर) बेशक अब तुम मारे जाओगे। बीस-बीस मदों की ताकत (कुर्सियों की तरफ इशारा करके) इन एक-एक औरत में और मुझमें है। यह न समझना कि तुम्हारे हाथ-पैर खुले हैं तो कुछ कर सकोगे। क्या भूल गये कि मैंने तुम्हारे हाथ से तलवार गिरा दी थी?

नानक––इतनी ही ताकत अगर तुम लोगों में है तो दोनों कुमारों की जान मुझसे क्यों माँगती हो? खुद जाकर उन लोगों का सिर क्यों नहीं काट लाती?

औरत––कोई खास सबब है कि हम लोग अपने हाथ से इस काम को नहीं करतीं, कर भी सकती हैं मगर देर होगी, इसलिए तुमसे कहती हैं। अब भी मंजूर करो, नहीं तो मैं जान लिए बिना न छोड़ेंगी।

नानक––(रामभोली की तरफ इशारा करके) उस औरत की जान, जिसे तुम महारानी की बहिन बताती हो, मेरे कब्जे में है, जरा इसका भी खयाल करना।

इतना सुनते ही रामभोली अपनी जगह से उठी और बोली, "यह कभी न समझना कि वह डिब्बा, जिसे तुम लाये थे, मैं बजरे में ही छोड़ आई और वह तुम्हारे या तुम्हारे सिपाहियों के कब्जे में है। मैंने उसे गंगा जी में फेंक दिया था और अब मंगा लिया, (हाथ का इशारा करके) देखो, उस कोने में छत से लटक रहा है।"

नानक घूम कर देखा और छत से उस डिब्बे को लटकता पाया। यह देख वह एकदम घबरा गया, उसके होश-हवास जाते रहे, उसके मुँह से एक चीख की आवाज निकली और वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा।

आधी घड़ी तक नानक बेहोश पड़ा रहा। इसके बाद जब वह होश में आया, उसमें खड़े होने की ताकत न थी। वह बैठा-बैठा इस तरह सोचने लगा जैसे कि अब वह जिन्दगी से बिल्कुल ही नाउम्मीद हो चुका हो। वह औरत नंगी तलवार लिए अभीतक उसके पास खड़ी थी। एकाएक भी नानक को कोई बात याद आई जिससे उसकी हालत बिल्कुल ही बदल गई, गई हुई ताकत बदन में फिर से लौट आई और वह यह कहता हुआ कि 'मैं व्यर्थ ही सोच में पड़ा हूँ', उठ खड़ा हुआ तथा उस औरत से फिर