पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२३१

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बातचीत करने लगा।

नानक––नहीं-नहीं, मैं कभी नहीं मर सकता।

औरत––अब तुम्हें बचाने वाला कौन है?

नानक––(रामभोली की तरफ देख के) उस कोठरी की ताली, जिसमें किसी के खून से लिखी हुई पुस्तक रखी है।

इतना सुनते ही रामभोली चौंकी। उसका चेहरा उतर गया, सिर घूमने लगा, और वह यह कहती हुई सिंहासन की बगली पर झुक गई, "आह, गजब हो गया! भूल हुई! वह ताली तो उसी जगह छूट गई! कम्बख्त, तेरा बुरा हो, मुझे जबर्दस्ती अ···प···ने···हा···थ!"

केवल रामभोली ही की ऐसी दशा नहीं हुई बल्कि वहाँ जितनी औरतें थीं सभी का चेहरा पीला पड़ गया, खून की लाली जाती रही और सब की सब एकटक नानक की तरफ देखने लगीं। अब नानक को भी विश्वास हो गया कि उसकी जान बच गई, जो कुछ उसने सोचा था, वह ठीक निकला। कुछ देर ठहर कर नानक फिर बोला––

नानक––उस किताब को मैं पढ़ भी चुका हूँ बल्कि एक दोस्त को भी इस काम में अपना साथी बना चुका हूँ। यदि तीन दिन के अन्दर मैं उससे न मिलूँगा तो वह जरूर कोई काम शुरू कर देगा।

नानक की इस बात ने सभी की बेचैनी और बढ़ा दी। महारानी ने आँखों में आँसू भरकर अपनी बगल में बैठे बाबाजी की तरफ इस ढंग से देखा जैसे वह अपनी जिन्दगी से निराश हो चुकी हो। बाबाजी ने इशारे से उसे ढाढ़स दिया और नानक की तरफ देखकर कहा––

बाबा––शाबाश बेटे, तुमने खूब काम किया! मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ, चेला बनाने के लिए मैं भी किसी ऐसे चतुर आदमी को ढूँढ़ रहा था!

इतना कहकर बाबाजी उठे और नानक का हाथ पकड़कर दूसरी तरफ ले चले। बाबाजी का हाथ इतना कड़ा था कि नानक की कलाई दर्द करने लगी, उसे मालूम हुआ मानो लोहे के हाथ ने उसकी कलाई पकड़ी हो जो किसी तरह नर्म या ढीला नहीं हो सकता। साफ सवेरा हो चुका था बल्कि सूर्य की लालिमा ने बाग के खुशनुमा पेड़ों की ऊपर वाली टहनियों पर अपना दखल जमा लिया था जब बाबाजी नानक को लिए एक कोठरी के दरवाजे पर पहुँचे जिसमें ताला लगा हुआ था। बाबाजी ने दूसरे हाथ से एक ताली निकाली जो उनकी कमर में थी और उस कोठरी का ताला खोलकर नानक को उसके अन्दर धकेल दिया और फिर दरवाजा बन्द करके ताला लगा दिया।

चाहे दिन निकल चुका हो, मगर उस कोठरी के अन्दर नानक को रात ही का समाँ नजर आया। बिल्कुल अँधेरा था, कोई सूराख भी ऐसा नहीं था जिससे किसी तरह की रोशनी पहुँचती। नानक को यह भी नहीं मालूम हो सकता था कि यह कोठरी कितनी बड़ी है, हाँ उस कोठरी की पत्थर की जमीन इतनी सर्द थी कि घण्टे भर में ही नानक के हाथ-पैर बेकार हो गए। घण्टे भर बाद नानक को चारों तरफ की दीवार दिखाई देने लगी। मालूम हुआ कि दीवारों में से किसी तरह की चमक निकल रही है