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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२३२

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और वह चमक धीरे-धीरे बढ़ रही है। यहाँ तक कि थोड़ी देर में वहाँ अच्छी तरह उजाला हो गया और उस जगह की हरएक चीज साफ दिखाई देने लगी।

यह कोठरी बहुत बड़ी न थी। इसके चारों कोनों में हड्डियों के ढेर लगे थे, चारों तरफ दीवारों में पुरसे भर ऊँचे चार मोखे (छेद) थे जो बहुत बड़े न थे, मगर इस लायक थे कि आदमी का सिर उनके अन्दर जा सके। नानक ने देखा कि उसके सामने की तरफ वाले (मोखे) में कोई चीज चमकती हुई दिखाई दे रही है। बहुत गौर करने पर थोड़ी देर बाद मालूम हुआ कि वे बड़ी-बड़ी दो आँखें हैं जो उसी की तरफ देख रही हैं।

उस अंधेरी कोठरी में धीरे-धीरे चमक पैदा होने और उजाला हो जाने से ही नानक डरा था, अब उन आँखों ने और भी डरा दिया। धीरे-धीरे नानक का डर बढ़ता ही गया क्योंकि उसने कलेजा दहलाने वाली और भी कई बातें यहाँ पाईं।

हम ऊपर लिख आये हैं कि उस कोठरी की जमीन पत्थर की थी। धीरे-धीरे यह जमीन गर्म होने लगी जिससे नानक के बदन में हरारत पहुँची और वह सर्दी जिसके सबब से वह लाचार हो गया था, जाती रही। आखिर वहाँ को जमीन यहाँ तक गर्म हुई कि नानक को अपनी जगह से उठना पड़ा मगर कहाँ जाता! उस कोठरी की तमाम जमीन एक-सी गरम हो रही थी, वह जिधर जाता उधर ही पैर जलता था। नानक का ध्यान फिर मोखे की तरफ गया जिसमें चमकती हुई आँखें दिखाई दी थी, क्योंकि इस समय उसी मोखे में से एक हाथ निकालकर नानक की तरफ बढ़ रहा था। नानक दबक कर एक कोने में हो रहा जिसमें वह हाथ उस तक न पहुँचे, मगर हाथ बढ़ता ही गया यहाँ तक कि उसने नानक की कलाई पकड़ ली।

न मालूम वह हाथ कैसा था जिसने नानक की कलाई मजबूती से थाम ली। बदन के साथ छूते ही एक तरह की झुनझुनी पैदा हुई और बात की बात में इतनी बढ़ी कि नानक अपने को किसी तरह सम्हाल न सका और न उस हाथ से अपने को छुड़ा ही सका, यहाँ तक कि वह बेहोश होकर अपने आपको बिल्कुल भूल गया। जब नानक होश में आया, उसने अपने आपको गंगा के किनारे उसी जगह पाया जहाँ वह रामभोली के साथ बजरे से उतरा था। बगल में पक्के केले का एक घौद भी रखा देखा। दिन बहुत कम बाकी था और सूर्य भगवान अस्ताचल की तरफ जा रहे थे।

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अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं, जहाँ से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुँचाया गया था।

नानक को कोठरी के अन्दर धकेल कर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारहदरी में पहुँचे। वहाँ कई आदमी बैठे

च॰ स॰-1