पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२३८

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क्या विचित्र गति है, वह क्या करता है, सो कुछ समझ में नहीं आता! यही सोचकर मैं हँसी थी और कोई बात नहीं है।"

लाली की बातों का और सभी को चाहे विश्वास हो गया हो, लेकिन हमारे ऐयारों के दिल में उसकी बातें न बैठीं। देखना चाहिए, अब वे लोग लाली के साथ क्या सलूक करते हैं।

पण्डित बद्रीनाथ की राय हुई कि अब इस तहखाने में ठहरना मुनासिब नहीं। जब यहाँ की अजायबातों से खुद यहाँ का राजा परेशान हो गया, तो हम लोगों की क्या बात है। यह भी उम्मीद नहीं है कि इस समय किशोरी का पता लगे। अस्तु, जहाँ तक जल्द हो सके यहाँ से चले चलना ही मुनासिब है।

जितने आदमी मर गये थे, उसी तहखाने में गड़हा खोदकर गाड़ दिये गये। बाकी बचे हुए चार-पाँच आदमियों को राजा दिग्विजयसिंह के सहित कैदियों की तरह साथ लिया और सभी का मुँह चादर से बाँध दिया। ज्योतिषीजी ने भी ताली का झब्बा संभाला, रोजनामचा हाथ में लिया, और सभी के साथ तहखाने से बाहर हुए। अब की दफे तहखाने से बाहर निकलते हए जितने दरवाजे थे, सभी में ज्योतिषीजी ताला लगाते गये जिसमें उसके अन्दर कोई आने न पावे।

तहखाने से बाहर निकलने पर लाली ने कुँअर आनन्दसिंह से कहा, "मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि मेरी सारी मेहनत बरबाद हो गयी और किशोरी से मिलने की कोई आशा न रही! अब यदि आप आज्ञा दें, तो मैं अपने घर जाऊँ, क्योंकि किशोरी ही की तरह मैं भी इस किले में कैद की गयी थी।"

आनन्दसिंह-तुम्हारा मकान कहाँ है?

लाली-मथुराजी।

भैरोंसिंह-(आनन्दसिंह से) इसमें कोई शक नहीं कि लाली का किस्सा भी बहुत बड़ा और दिलचस्प होगा। इन्हें हमारे महाराज के पास अवश्य ले चलना चाहिए।

बद्रीनाथ–जरूर ऐसा होना चाहिए, नहीं तो महाराज रंज होंगे।

ऐयारों का मतलब कुँअर आनन्दसिंह समझ गये और इसी जगह से लाली को बिदा होने की आज्ञा उन्होंने न दी। लाचार लाली को कुँअर साहब के साथ ही जाना पड़ा और ये लोग बिना किसी तरह की तकलीफ पाए राजा वीरेन्द्रसिंह के लश्कर में पहुँच गये जहाँ लाली इज्जत के साथ एक खेमे में रखी गई।

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेन्द्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पण्डित बद्रीनाथ, भैरोंसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुँअर