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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२७

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नौजवान औरतों का एक झुंड नजर पड़ा जो रंग-बिरंगी पोशाक और कीमती जेवरों से अपने हुस्न को दूना किए ऊँचे पेड़ से लटकते हुए एक झूले को झुला रही थीं। कोई वंशी कोई मृदंगी बजाती, कोई हाथ से ताल दे-देकर गा रही थी। उस हिंडोले पर सिर्फ एक ही औरत गंगा की तरफ रुख किए बैठी थी। ऐसा मालूम होता था मानो परियाँ साक्षात् किसी देवकन्या को झूला झुला और गा-बजा कर इसलिए प्रसन्न कर रही हैं कि खूबसूरती बढ़ने और नौजवानी के स्थिर रहने का वरदान पावें। मगर नहीं, उनके भी दिल की दिल ही में रही और कुंअर इन्द्रजीतसिंह तथा आनन्दसिंह को आते देख हिंडोले पर बैठी हुई नाजनीन को अकेली छोड़ न जाने क्यों भाग ही जाना पड़ा।

आनन्दसिंह-भैया, वे सब तो भाग गईं!

इन्द्रजीतसिंह–हाँ, मैं इस हिंडोले पास जाता हूँ, तुम देखो कि वे औरतें किधर गईं?


आनन्दसिंह-बहुत अच्छा।

चाहे जो हो मगर कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने उसे पहचान ही लिया जो हिंडोले पर अकेली रह गई थी। भला यह क्यों न पहचानते ? जवहरी की नजर दी हुई अँगूठी पर उसकी तस्वीर देख चुके थे, इनके दिल में उसकी तस्वीर खुद गई थी, अब तो मुँहमाँगी मुराद पाई, जिसके लिए अपने को मिटाना मंजूर था, उसे बिना परिश्रम पाया, फिर क्या चाहिए?

आनन्दसिंह पता लगाने के लिए उन औरतों के पीछे गए, मगर वे ऐसा भागी कि झलक तक दिखाई न दी, लाचार आधे घण्टे तक हैरान होकर फिर उस हिंडोले के पास पहुँचे, हिंडोले पर बैठी हुई औरत को कौन कहे अपने भाई को भी वहाँ न पाया। घबरा कर इधर-उधर ढूँढ़ने और पुकारने लगे, यहाँ तक कि रात हो गई और यह सोच कर किश्ती के पास पहुँचे कि शायद वहाँ चले गये हों, लेकिन वहाँ भी सिवाय उस बूढ़े खिदमतगार के किसी दूसरे को न देखा। जी बेचैन हो गया, खिदमतगार को सब हाल बताकर बोले, "जब तक अपने प्यारे भाई का पता न लगा लूंगा घर न जाऊँगा, तू जाकर यहाँ का हाल सब को खबर कर दे।"

खिदमतगार ने हर तरह से आनन्दसिंह को समझाया और घर चलने के लिए कहा मगर कुछ फायदा न निकला। लाचार उसने किश्ती उसी जगह छोड़ी और पैदल रोता-कलपता किले की तरफ रवाना हुआ। क्योंकि यहाँ जो कुछ हो चुका था, उसका हाल राजा वीरेन्द्रसिंह से कहना भी उसने आवश्यक समझा।

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खिदमतगार ने किले में पहुँच कर और यह सुन कर कि इस समय दोनों एक ही जगह बैठे हैं कुँअर इन्द्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनन्दसिंह की जुबानी सुना था, महाराज सुरेन्द्रसिंह और वीरेन्द्रसिंह के पास होकर