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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२८

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अर्ज किया। इस खबर के सुनते ही उन दोनों के कलेजे में चोट सी लगी। थोड़ी देर तक घबराहट सबब कुछ सोच न सके कि क्या करना चाहिए। रात भी एक पहर से ज्यादा जा चुकी थी। आखिर जीतसिंह, तेजसिंह और देवी सिंह को बुला कर खिदमतगार की जुबानी जो कुछ सुना था कहा और पूछा कि अब क्या करना चाहिए?

तेजसिंह-उरा जंगल में इतनी औरतों का इकट्ठे होकर गाना-बजाना और इस तरह धोखा देना बेसबब नहीं है।

सुरेन्द्रसिंह-जब से शिवदत्त के उभरने की खबर सुनी है, एक खटका सा बना रहता है। मैं समझता हूँ यह भी उसी की शैतानी है।

वीरेन्द्रसिंह-दोनों लड़के ऐसे कमजोर भी तो नहीं हैं कि जिसका जी चाहे, उन्हें पकड़ ले।

सुरेन्द्रसिंह-ठीक है मगर आनन्दसिंह का भी वहाँ रह जाना बुरा ही हुआ।

तेजसिंह-बेचारा खिदमतगार जबर्दस्ती साथ हो गया था, नहीं तो पता भी न लगता कि दोनों कहाँ चले गये। खैर, उनके बारे में जो कुछ सोचना है सोचिये मगर मुझे जल्द इजाजत दीजिये कि हजार सिपाहियों को साथ लेकर वहाँ जाऊँ और इसी वक्त उस छोटे से जंगल को चारों तरफ से घेर लूं, फिर जो कुछ होगा देखा जायगा।

सुरेन्द्रसिंह—(जीतसिंह से) क्या राय है?

जीतसिंह-तेज ठीक कहता है, इसे अभी जाना चाहिए। हुक्म पाते ही तेजसिंह दीवानखाने के ऊपर बुर्ज पर चढ़ गए, जहाँ बड़ा-सा नक्कारा और उसके पास ही एक भारी चोब इसलिए रक्खा हुआ था कि वक्त-बे-वक्त कोई जरूरत आ पड़े और फौज को तुरन्त तैयार करना हो, तो इस नक्कारे पर चोब मारी जाय। इसकी आवाज भी निराले ढंग की थी जो किसी नक्कारे की आवाज से मिलती न थी और इसके बजाने के लिए तेजसिंह ने कई इशारे भी मुकर्रर किये

तेजसिंह ने चोब उठा कर जोर से एक दफा नक्कारे पर मारा जिसकी आवाज तमाम शहर में बल्कि दूर-दूर तक गूंज गई। चाहे इसका सबब किसी शहर वाले की समझ में न आया हो मगर सेनापति समझ गया कि इसी वक्त हजार फौजी सिपाहियों की जरूरत है जिसका इन्तजाम उसने बहुत जल्द किया।

तेजसिंह अपने सामान से तैयार हो किले के बाहर निकले और हजार सिपाही तथा बहुत से मशालचियों को साथ ले उस छोटे से जंगल की तरफ रवाना होकर बहुत जल्दी ही वहाँ जा पहुँचे।

थोड़ी-थोड़ी दूर पर पहरा मुकर्रर करके चारों तरफ से उस जंगल को घेर लिया। इन्द्रजीतसिंह तो गायब हो ही चुके थे, आनन्दसिंह के मिलने की बहुत तरकीब की गई मगर उनका भी पता न लगा। तरदुद में रात बिताई, सवेरा होते ही तेजसिंह ने हुक्म दिया कि एक तरफ से इस जंगल को तेजी के साथ काटना शुरू करो जिसमें दिन भर में तमाम जंगल साफ हो जाय।

उसी समय महाराज सुरेन्द्र सिंह और जीतसिंह भी वहाँ आ पहुंचे। जंगल का काटना इन्होंने भी पसन्द किया और बोले कि 'बहुत अच्छा होगा, अगर हम लोग इस

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